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उपासना

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शिव की उपासना करती पार्वती कभी थकी नहीं। हिमखण्डों में श्वेत हो लीन रही शिव में। चंद्र से मुख पर मणियों सी आभा लिए। उर्मिला सी उपासना जिसे अपने आँसुओ को भी बहाने की इजाज़त न थी। बस इंतजार में राह ताकती रहती थी। स्त्री उस मूसलाधार बारिश जैसी है, जो प्रेम से धरा को सींचती है। खुद के आँसुओ से। राधा का प्रेम राधा का वियोग जैसे धैर्य ने खुद उपासना की हो देवों की, विधि के विधान की। उपासना प्रेम की... एक जटिल और सरल प्रक्रिया स्त्री और पुरुष का अर्धनारीश्वर स्वरूप। शक्ति (स्त्री) संग्राहक (देव) का प्रखर प्रेम। जैसे आसमान से नीले बादल बरस कर धरा को हरयाली चादर ओढ़ा कर, सारे रिक्त स्थान भर देते है। शक्ति कभी शिव की उपासना करती है तो कभी सर्वमानिनी अनेक रूपों में शिव के साथ संसर्ग कर रति को धन्य करती है। यही शक्ति सावित्री बन यम को पराजित भी करती है। शक्ति स्वयं कहती है। पुरुष का तेज जो गर्भाधान करवाता है, वह भी शक्ति का ही एक अंश है। स्त्री तत्व को संबोधित करती शक्ति सजल नयनों से नीर बहाती वाणी में मधुरता धैर्य जिसका गहना पर एक जटिल मौलिक रचना जिसमें स