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मार्च, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तेरी परछाई...बिल्कुल तुझ सी...!!!

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तुझे क्या हुआ? मुझे बता... तेरी चुनर किसने खींचीं... मुझे बता । तू क्यूँ? जीती जागती चिता बन गई... आ उसकी चिता सज़ा दे... जिसने तेरी चुनर खींचीं...। तू रो मत... तू पाक थी, है, और रहेगी, हमेशा...। वो नपुंसक था...। जिसने तेरी चुनर खींचीं... भूल जा वो दर्द, वो सितम... तू तैयारी कर ले नई राह की... नये भविष्य की । जो बाहें फैलाये तेरी प्रतीक्षा कर रहा है...। आ उनको सबक सिखाते है...। जिन्होंने... हाथों में त्रिशूल थमा महान बनाया... फिर लाज़... शर्म... हया... के गहने तले हमें दबाया... हमारा तिरस्कार किया... हमें आईने में कैद कर... हमारा शोषण किया...। पूरी पीढ़ी का जन्म दाता बना... हमें दूध के कटोरे में डूबाया...। हमारे जन्मते ही हमें खोखले रीति- रिवाजों की भेंट चढ़ाया...। कही बुर्का...कहीँ घूँघट... ओढ़ाया... और खुद की पैदाइस के लिए इस्तेमाल किया...। हमें चूल्हें - चौके में झोंक खुद शासक बना...। हमें पराश्रित किया...। आ... तू रो मत...उन्हें सबक सिखाते है...। जिन्होंने हमें रुलाया...। आ शिक्षा तले शस्त्र उठाते है...। बिन्दी, पायल, चूड़ी,  नथनी,  बिछिया... सब सिरहाने रख

मैं और मेरा चाँद

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            मेरी शामें सिमटी तुझमें , रातें बेख़ौफ़ तुझसे लिपट रही है । सूरज की पहली किरण भी तू , दोपहर की जागती ख़्वाबो का एहसास भी तू , तुझे कैसे बताऊ सारे अनगढ़ सवाल तू , सारे अनसुलझे सवाल भी तू , और मेरी मुस्कान की वजह भी तू , मेरे चेहरे पर चढ़ा ये सिन्दूरी रंग भी तेरा , मेरे होंठो से किलकारियां फूट रही है । और अब मुझे डर लग रहा है । कहीँ कोई देख न ले , कहीँ मैं बीना वजह बदनाम न हो जाऊं , तेरा क्या है । तू तो छिप जायेगा रात में जुगनू सा , मैं रात में सितारों की महफ़िल में , चाँद की मंधिम रौशनी में पकड़ी जाऊँगी । फिर क्या कहूंगी सबसे , जब लोग पूछेगें ये सिन्दूरी रंग कैसे चढ़ा , किलकारियां क्यों फूटी , तो मैं एक बहाना फिर गढ़ दूंगी , की , मुझे ये चाँद जला रहा था , चिढ़ा रहा था , इसलिए मैं भी उसे जला रही थी , चिढ़ा रही थी । पवन बहका रहा था , इसलिए मैं भी उसे बहका रही थी । और अब रात में उसे फिर जलाऊंगी , फिर चिढाऊँगी , क्योंकि उसने चाँद से मेरे बारे में बातें कर मुझे परेशान किया है । अरे , तुम सब मुझे गलत समझ रहे हो , मैं तो इस चाँद से बदला ले रही हूँ , और कुछ नह

वक़्त का वक्तव्य

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          दफ़न ख्वाइशों का जिंदा मिशाल हूँ , हर गली , हर मोहल्ला , हर शहर ,  मेरा एहसानमंद है । मैं क़ातिल नहीं , बस समझौता हूँ , मैं सबकी खुशियों का राज़दार हूँ , पर क्या करूँ , जिन्दगी सिर्फ खुशियों का ताना , बाना तो नहीं । मैं बिन बुलाया मेहमान सा हूँ , कोई चाहे न चाहे सबकी जिंदगियों को बहा ले जाता हूँ , सब मेरी परवाह करते है । पर चलते , ग्रह- नक्षत्रों के हिसाब से है । मैं क्या करूँ लू के थपेड़े दे उन्हें भी समझाता हूँ , फिर सबका गुनाहगार भी , कहलाता हूँ । पतझड़ सा उड़ , इस सदी से , उस सदी में , यू ही भटक रहा हूँ । मैं भविष्य की टहनी हूँ , तो गड़े मुर्दो का वक्त भी , मेरा खुद का कोई रंग , कोई आकार , कोई रूप नहीं । बस सबको वक़्त के अनुरूप ढाल देता हूँ । मैं वक़्त हूँ , मैं हर पल , हर लम्हा चलता हूँ , इंतज़ार किसी का नहीं करता । कभी भी , कभी भी , !!!

कब आओगे कान्हा

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            कहाँ हो कान्हा , मन बहुत व्याकुल है । सुना है । तुम्हारे चाहने वाले बहोत है । अब मेरे लिए तुम्हारे पास वक़्त नही , पर कान्हा मैं तो सिर्फ तुम्हारी थी , हूँ , और हमेशा रहूँगी , पता है कान्हा , आज मेरा मन तुम में बहक रहा है , धरा सा फ़ैल रहा है , आसमां सा भटक रहा है , किरणों सा उड़ रहा है , पवन सा शोर मचा रहा है , । जानती हूँ , तुम्हे सारी दुनिया चलानी है । पर मेरा क्या कान्हा , दो पल मेरे लिए भी निकाल लिया करो । आज माँ यशोदा भी तुम्हारी शिकायत कर रही थी । तुमने बहोत दिनों से माखन भी नहीं खाया है । वो यु  ही पड़ा - पड़ा तुम्हारे इंतज़ार में पिघल रहा है । सुनो  ,  कान्हा हम सबसे यु पीछा न छुड़ाओ , आ जाओ इस धरती पर फिर से , सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे है ।                                      कान्हा को फाइलों की रट लगी है ,                    यहाँ मेरी नींद उड़ी है ।                    कान्हा गोपियों संग उड़ रहा है ,                    यहाँ मैं तारों संग भटक रही हूँ ।                     जाने कब आयेगा कान्हा  ,                     बारिशों सा इंद्रधनुषी सौगा

कुछ सच्ची कुछ झूठी जिन्दगी

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जिन्दगी हर मोड़ पर एक नया राज़ लाती है । दीपक की लौ कभी मंदी कभी तेज़ हो जाती है । मन अश्कों की पेटी है , चाबी जाने कहाँ गुम हो गई है । अब बदलो की गर्जन भी डरा नहीं पाती , हिमशिला पिघला नहीं पाती । माना आग का दरिया बारिश बुझा देगी , पर बारिश के जले को बारिश कैसे बुझाएगी । तुम्हारी नजरें भी मुझे भटकती सी लग रही थी । अच्छा हुआ जो मैंने सूरत छीपा रखी थी । कान्हा को राधे बहुत प्रिय थी । पर राधा तो उनके नसीब में नहीं थी । ये तो एक भटकन है , सारा दोष नसीब का है । हाथो की लकीरों को देख हम खुश होते रहे । पर नसीब की बुआई तो पत्थरों से हुई थी । जिस्म की दहलीज़ पर भी संगमरमरी , पत्थर बिछे थे । फिर नर्म मख़मली बिस्तर पर हमें नींद का सुकून , कैसे मिलता । माथे पर बदनसीबी का तिलक सजा है , फिर होंठों पर वीणा के तार कैसे लहरायेंगे । जिन्दगी पैबंद लगी रेशमी साड़ी में लिपटी है । अब पिघलते मोम से भी डरती है । जिन्दगी हर मोड़ पर एक नया राज़ लाती है। दीपक की लौ कभी मंदी कभी तेज़ हो जाती है ।

बोझिल मन

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बोझिल मन , खुशियां पराई , नमक के समुंदर में तैरता मन , जैसे सागर की गहराई में कोई प्यासा , प्यासा ही मर गया । आँखों की दहलीज़ पर अश्कों के मोती ठहरे , होठों में दबी सिसकियों की राह ताक रहे है । जैसे अमावश्या का चाँद इनका समझौता कराने आयेगा । उलझनों का मौसम बेसुध आंगन में टहल रहा है , सुखी पवनों का हमराज़ बन रहा है , जैसे ये परछाई बन इनका साथ निभाने वाली है । इन गहरे रंग की बोतलों से न जाने क्यों बहुत खुशबू आ रही है , इनमें दर्द के छाले भिगोने का मन कर रहा है । इस जिस्म की रंगत अब उड़ चुकी , इसे इत्र की शीशी से नहलाने का मन कर रहा है । बेख़ौफ़ अब उस तराशें हुए पत्थर को चाट कर चाँद की गहराई में तारों संग टिमटिमाने का मन कर रहा है । ये काले बादल अब मेरा हमदर्द है , इनके साथ तड़प कर जाऱ - जाऱ रोने का मन कर रहा है । अब मुमताज़ की सखी बन कब्र की चादर तले बातें करने का मन है । कब्र में सुकून की नींद पाने का मन है !!!

ओ मेरे चंदा

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        ओ मेरे हमदम , मेरे दोस्त , मेरे हमसफ़र चंदा..... तुम रोज घटते - बढ़ते क्यों रहते हो बिल्कुल मेरे मन की तरह । तुम न पास आते हो न दूर जाते हो.... बस मुझे ताकते रहते हो । क्यों ? वो भी ऐसे रातों को दिन में न जाने  कहाँ  चले जाते हो मुझे छोड़कर । मैं तो बस तुम्हें ही ढूढ़ती फिरती हूँ । फिर सूरज से पता चलता है । तुम रात को आओगे मुझे देखने क्यों ? बोलो और हर पन्द्रवे दिन तुम कहाँ चले जाते हो ? मैं तुम्हारी राह ताकते- ताकते यू ही  खुले आंगन में सो जाती हूँ। क्या अच्छा लगता है तुम्हे । मुझे ऐसे क्यों तड़पाते हो । मेरे दोस्त मेरे हमसफ़र चंदा मुझे यू छोड़ कर न जाया करो मुझे अच्छा नहीं लगता है । तुम्हारा ऐसे जाना । जब तुम फिर पन्द्रवे दिन बाद पुरे होकर आते हो कितने सूंदर लगते हो । मैं तो बस तुम पर मुग्ध ही हो जाती हूँ । उस दिन मैं तुम्हारे लिये खीर भी बनाती हूँ पर तुम नहीं खाते मैं ही तुम्हारे हिस्से का भी खाती हूँ । तुम ऐसा क्यों करते हो ? कुछ तो बोलो मेरे हमसफ़र , मेरे चंदा । तुम्हारी ये शीतल चाँदनी मुझे बहुत भाती है । सच कहती हूँ । मैं तो हर पल

मुरझाई पवन का शोर

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ये देखो कैसी ब्यार है । हर तरफ मुरझाई पवन का शोर बारम्बार है । कही कमल हवा में लहरा कीचड़ में गिर रहा है । कही हाथ हवा में लहरा खुद का पसीना पोछ रहा है । अब तो झाडू भी सड़को से पहले घर साफ कर रही है । अपने तन का पसीना मफ़लर से पोछ रही है । ये देखो विरोधी हवाएं खुद को तलाशती यहाँ आ रही है । जाने अब क्या होगा । धरती पर बाढ़ आयेगी या आग लगेगी । पर मुझे क्या कुछ भी हो । मेरा तो हश्र अब भी पहले जैसा ही होगा । घर का चूल्हा बड़ी किफ़ायत से चलेगा !!

मन की कलम से

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           ये मन की तड़प है , या मन का सुकून , जो हर किसी पर शक़ होता है । इस धरा पे एक सुकून मुझे भी दे दो माँ , इस अम्बर पे एक तारा मेरा भी रख दो माँ , अब मन में एक प्यास सी जागी है , मेरे हाथों की कलम उसे बुझाती है । अब मेरा मन मुझे बहुत रुलाता है , बस कोरे पन्नों पर बिखर सुकून पाता है । अब मुझमें किसी चीज का बसेरा नही है । बस रातों की तन्हाई में खुद से बातें कर , अम्बर पर तारों सा पसर कर सो जाती हूँ !!! अक्सर उनींदी सुबह के सपनें सच्चे से लगते है । मलती आँखों को हर ख्वाब पुरे से लगते है । पर ये बेरहम जिन्दगी ढलती शाम में आकर मायूस सी हो जाती है । और  चादर से लिपट कर फिर एक नया ख्वाब बुनती है । और हमें गुमराह करती है .........!!!!

जय श्री कृष्णा

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          पिछले कुछ दिनों से ।  अपनी सफलता पर मुझे घमंड हो गया था। मैं हर किसी पर दया दिखाने लगी कान्हा जी से भी खुद की तारीफ़ करने लगी राह चलते लोगों का भी कोरी बातों से दिल दुखाने लगी मुझे हर सफलता पैसों का खेल लगता किसी को भी नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं गंवाती मेरी गर्दन अब अकड़ी रहती बड़ो का अपमान छोटो का तिरस्कार करने लगी एक दिन कान्हा जी मेरे स्वपन्न में आये और बोले तुम हर चीज पैसों से नहीं खरीद सकती हो और न अपने नसीब पर घमंड कर सकती हो ये पैसे तुम्हें पिछले जन्म में किये गये दान  की वजह से मिले है । और नसीब पिछले जन्म के कर्मो की वजह से । तो मैंने कहा ये सब फालतू की बात है । कोई पिछला जन्म नहीं होता । बस वर्तमान होता है । तो कान्हा जी ने कहा  वर्तमान में तुम्हारे पिता की इतनी हैसियत नहीं थी । जो तुम्हे इतना पढ़ाते तुम्हारी पढ़ाई एक सज्जन की वजह से पूरी हुई है । तुम बहुत सुंदर भी नहीं हो फिर भी एक अमीर घर में ब्याही गयी हो । तुम्हारा पति एक नेकदिल इंसान है । जो तुम्हे बहुत चाहता है। क्या ये सब कुछ तुम्हारे लिये इतना आसान था । मैं उन

विचारों का आहता

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       आज मन ख़यालो में उलझा है।  न जाने क्यों..... तुम बहोत याद आ रहे हो ..... मन बार- बार तुम्हे याद कर रहा है...... तुम्हारी वो अनकही बातें .....ऐसा लग रहा है.....कि जैसे तुम मुझे ही याद कर रहे हो......मन में एक अजीब सी कसक है.....मानो मुझसे कह रही हो तुम इतनी बेदिल क्यों हो.......तो मैंने उसे समझाया .. मैं बेदिल नहीं हूँ बस अब खुद से भी डरती हूँ...... क्योंकि ये सागर की लहरें बार-बार साहिल से टकराकर ...वहाँ पड़ी रेत को बिखेर कर वापस चली जाती है.....उसे तड़पता छोड़कर...... फिर लौटती है....और फिर चली जाती है........ ये जमीं,  ये आसमां,  ये चाँद सितारें,  मेरे तो सब तुम हो... वो बारिशों में गुलाबो से छनकर आती खुश्बू भी तुम हो....... आज तुम बहोत याद आ रहे हो......... न जाने क्यों बार-बार याद आ रहे हो !!!!! 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 मेरे जीने की वजह तुम बन जाना । तेरे जीने की वजह मैं बन जाऊँगी । हम यू चलेंगे सफ़र में साथ-साथ । जैसे सितारों की छांव में चमकते दो जुगनू , सागर की लहरों पर चलती दो किस्तियां , अम्बर में चलते चाँद और सूरज !!! 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

विचारों का आहता

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         ये तो जिन्दगी का खेल है। तू हौसला रख नहीं तो बेवक़्त मारा जायेगा। यहाँ हर अपराध खेल है।  बस एक शर्त ...है। तू शातिर होना चाहिए।  नहीं तो प्रकृति भी मार मारेगी किस्मत की ....... यहाँ हर बात पर राजनीति होती है , यहाँ हर जीत पर नारेबाज़ी होती है , यहाँ हर तरफ मीडिया का बोलबाला है , कहीँ नीरव कहीँ विजय माल्या है , जो देश की सोने की चिड़िया ले उड़े है ! मुझे तो अब कुछ समझ में नहीं आता है। जिधर से हवा आती है , उधर जाती हूँ। और अपना आधार कार्ड ढूंढती हूँ , न जाने कहाँ रख दिया है। आज मुझे मंदिर जाना है। वो भी इस शहर में बहोत मशहूर है। अगर आज आधार न मिला तो मुझे डर है , क्या पता माता के दर्शन होंगे या नहीं। अरे याद आया वो तो मैं बैंक में रख आयी थी। सब ने कहा था था।  अब यही तुम्हारा मझधार है !!!!

विचारों का आहता

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       इन खुशियों की क़ीमत क्या है, बस थोड़ा सा अपनापन । जो मिलता नहीं अब कही भी, और अगर मिल भी जाये क़िस्मत से, तो उस पर खोखली महोब्बत की चासनी चढ़ी होती है, जो हमें बर्बाद करती है। होले-होल !! अब मुझ पर किसी बात का असर नहीं होता। न चांदनी तड़पती है,  न सूरज जलाता है,। बस जिन्दगी की दौड़ में, आंखे रोती है,  होंठ हँसते है,  दिल खोता है, और जिस्म , अपनी रफ़्तार से चलता है !! ये तो महोब्बत का उसूल है। यहाँ हर शक्श मजबूर है। किसी को सूरत पसंद है,  किसी को सीरत, और जहाँ दोनों हो वहाँ सिर्फ बहस होती है। और शादी पर समझौता होता है। और फिर थोड़े दिनों के बाद दोनों का रास्ता अपने -अपने घर को जाता है !! महानता सिर्फ किताबो में अच्छी लगती है। रोज़ तो वही रोटी दाल अच्छी लगती है। अक्सर कब्रिस्तान से पास से गुजरते हुए मन में वैराग आता है। लेकिन थोड़ी दूर जा कर वही बाज़ारवाद नज़र आता है !! ये दालचीनी की सुगंध अब बहोत भा रही है, जिन्दगी प्याज के परतों सी उधड़ी ताक रही है, सब कुछ खोकर भी कुछ न पाया कह रही है, अब आँखों को नींद बहोत भाती है, पर शरीर की लाचारी तड़पारही है, जिन्द

उड़ते बुलबुले सी जिन्दगी........

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ऐ जिन्दगी तू इतनी उदास क्यों है, मैं तो भूली थी अपना हर गम, तू फिर लौट कर क्यों आ गयी, क्या तुझे भी मेरे बीना चैन नहीं है, आ जब तू आ ही गयी है। फिर से, तो कुछ गुजरी बातें करते है, कुछ बिसरी यादें दोहराते है, कुछ रातें फिर साथ - साथ रोते है, कुछ बातें मैंने अब तक तुझसे छुपा रखी थी, वो सब तुझे बताती हूँ, और अपना दिल हल्का करती हूँ, अब हर ख़ुशी पर शक़ होता है, और हर गम अपना मीत लगता है, जो हर पल मेरी राह ताकता है, और मुझे देखते ही मेरे गले लग जाता है, और मुझसे कहता है, तुम मुझे यू तन्हा न किया करो मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता हूँ, आ ऐ जिन्दगी अब तू उदास न हो, कुछ वक़्त साथ -साथ रहते है कुछ वक़्त साथ -साथ रहते है !!
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             ये कैसा मुल्क है। यहाँ हर तरफ शुल्क है। बाप बेटे की लड़ाई में माँ घुली जा रही है, पराई बेटी को याद कर सब्जी को खारा किये जा रही है।आँसुओ की लड़ी से। उस घर की बहन रो-रो कर कोहराम मचा रही है। क्योंकि पाक रिश्ते को दाग़दार किया उसके अपने ही भाई ने अब रोटी खाने का मन नहीं करता क्योंकि खुद अनाज़ उगाने वाला किसान दाने -दाने को मोहताज है, आत्महत्या करने को मजबूर हो रहा है। आज पाड़ोसी के घर जनाज़ा निकला है। खाप पंचायत पर अमल हुआ है।बेचारी माँ भी नहीं रोने के लिए मजबूर है। बाप चुपचाप कोने से विदाई दे रहा है। पर भाई का सीना चौड़ा है। अबकी बार उसकी जीत पक्की है। अब वो भी सरपंच बनेगा अपनी जाती की रक्षा करेगा । बाप के मरने पर आज वो बेटा भी मन ही मन बहुत खुश है। अब वो बेरोजगार नहीं रहेगा। बाप की जगह उसकी भी सरकारी नोकरी पक्की है। चलो एक तो सुकून है। उस घर की बेटी डॉक्टर बन गई अब सारे घर का इलाज़ फ्री में होगा। बेटा अगर डॉक्टर बन जाता तो विदेश में जा बस्ता और कोई गोरी ब्याह लाता। और हमें विरधा आश्रम की राह दिखा देता। लेकिन बेटी तो अब भी ब्याह के खिलाफ है। हमारी सेवा करना चाहती है,
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              मन का क्या है !! साहब !! उधड़े सपनो का महल है। रोज़ ख्वाबो की गलियों में भटकता है। और थक कर बिस्तर पर चादर सा सिमटकर सो जाता है। और फिर एक खण्डहर में बेसुध घुमता है!!! ये शरबतों से रंग बदलते रिश्ते ?? रोज़ कड़वाहट की चासनी में पकते है। और गैरों से अपनापन पा मोम से पिघलकर अपनी ऊँगली जला बैठते है !! 😢😢!! शक्ख का कोई मज़हब नहीं होता , बस अपनों की आँखों में बेरंग आंसू भरते है। कड़वाहट की आग में खुद जलते है , दुसरो को जलाते है। और ऊपर वाले से हर पल शिकायत करते है। ये तूने मेरे साथ अच्छा नहीं किया???!!! अपने ग़मो में , मैं अक्सर तेरी तलाश करता हूँ , तुझसे ढेरों सवाल करता हूँ , और खुद जवाब बनता हूँ , तुझे कैसे बताऊ मैं , ये सब कैसे करता हूँ , बस तेरी तस्वीर पर सर रख कर सो जाता हूँ.......!!!

आओ अल्फाज़ो में कुछ देर साथ चलते है....।।।

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                   ये दुनिया का दस्तूर है,यहाँ हर इंसान बेनूर है। आओ अल्फाज़ो में कुछ देर साथ चलते है... सड़को पर बहते शोर की बातें करते है..... दुनिया में औरतों के होड़ की बातें करते है...... नेताओं सी चाल चलते है। अपनी हार का ठीकरा...पाड़ोसी के सर पर फोड़ते है! कुछ देर खुद की तारीफ़े करते है......☺☺ दुनिया के प्रति उदासीनता जताते है? कुछ बाते आज ले माहौल की करते है। कुछ बातें रिश्तेदारों की करते है। क्या सच में अब सब कुछ बदल गया है। क्या हम-तुम नहीं बदले, जब सब बदलेगा तो हम-तुम भी बदलेंगे न, क्या हुआ जो फिर मौसम बदला फिर आँधियों का दौर चला , अब तो हम-तुम भी ढल चुके इन आँधियों में, वक़्त की गुलाल उडी है, तेरे मेरे चेहरे सजे है, बस कुछ बूंदे माथे उभरी है पसीनें की, कुछ सलवटे पडी है रिश्तो की, पर हम तुम यू ही चल रहे है, जैसे पांव पड़े छाले, जिस्म बेख़बर...... नसों में बहता रक्त,दिमाग सुन बस निवाला निगल रहे है,स्वाद ख़ामोश....... पर फिर भी हम-तुम जी रहे, चेहरे पर नकली मुस्कुराहट का नक़ाब ओढ़े..... चल रहे दुनियां की दौड़ में, शामिल हो रहे...... जिंदगी के अनसुलझे फ़साने में
कल किसी ने मुझसे पूछा तुम्हारी पहचान क्या है तो मैंने कहा बस इतनी की मैं एक स्त्री हूँ मैं मानव का निर्माण करती हूँ अगर मैं नहीं तो तुम भी नहीं। सुनो तुम इतने हैरान परेशान क्यों हो हर वक़्त यू खुद को इल्ज़ाम न दिया करो ये जो ऊपर आसमां में रहता है न वो तुम्हारा इम्तिहान ले रहा है कि जिस हुनर से तुम्हें नवाज़ा था वो तुम में अब भी है। या उड़ गया ज़माने में। ये इंटरनेट की दुनियां भी महान है। कुछ गैरों में अपनापन , कुछ में प्यार है। यहाँ हर हार जीत सी लगती है। हर बात सच्ची सी लगती है। काश तुम मुझे पहले मिले होते हर दिल ये कहता है और तान के चादर आधी रात को सुकून से सोता है।

आजकल मेरा शहर

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                आजकल यहाँ हर बात की जुगाली होती है , आजकल यहाँ हर नेता की हिस्सेदारी होती है। अब मेरा शहर रातों को सोता नहीं पहरेदारी करता है,उन अपनों की जो मोबाईल में करवटे बदलता है। और सुबह तीख़े प्रहार करता है। अब कुछ संजीदा लोग हर बात में हां में हां मिलाने का रूख अख़्तियार करते है, और जिन्दगी को अपने ढंग से जीने के लिए मौन धारण करते है। आजकल रिश्तों की मलाई गर्म दूध की मलाई में खो गई है,और कुछ ही बिलोनी में जाकर मक्खन बनते है। आजकल हर चीज पे शक़ होता होता है, हर रिश्ता नीम पे चढ़ता लगता है। अब मन की बाते नादानी लगती है, तन की बाते रूहानी लगती है। अब हम वक़्त को अपनी मुट्ठी में भरते है, और सोशलमीडिया पर दिल खोलकर खर्च करते है।

बारिश की बारिक फ़ुहार

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                 ये गगन में उड़ रहा पंछी कितना प्यारा लग रहा है। तेरी रूह से मेरी रूह का नाता कोई पुराना लग रहा है। यू ही कोई जिंदगी की सुनहरी सुबह का गुलाब नहीं बनता , मोगरे सा प्यार नहीं बनता, जिंदगी की सारी तन्हाइयो का मददगार नहीं बनता। अब तो हर हार में जीत नज़र आती है। कोई कुछ भी कहे मुझे तो बारिश की बारीक फ़ुहार नज़र आती है। अब मुझे अमावस का चाँद भी बहुत खुबसूरत लगता है।क्योंकि खुद छिपकर तारों की महफ़िल सजाता है, और किसी कोने में छिपकर सुबह का इंतज़ार करता है। अब शहर भर में मेरे चर्चे आम है। क्योंकि हर शख्स में मेरी पहचान है।
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मैं दुनियांवी दुकानदारी समझती नहीं, हिसाब की थोड़ी कच्ची हूँ। इसलिए कुछ गैरों ने अपना समझ ठग लिया,और अपनों ने छल लिया। मेरे जिस्म में अब मेरी सांसे घुटती है।, दर्दो से मेरा गहरा नाता है। अब मैं आँसुओ की बेहद शौकीन हो गई हूँ, हर बात पे हर एहसास पे जाम सा पीती हूँ। ज़ख्मो को सिते- सिते हाथों में छाले उभरे है। और जिस्म बेखबर सा यादों में सुकून तलाश रहा है। हर तरफ खुशियों की क्लास लगी है। जो जीने के हुनर सिखा रही है। अब मैं हैरान परेशान नहीं हूँ, बस खुद को भीड़ से अलग करना चाहती हूँ। आसमां में चैन से सोना चाहती हूँ, तारों के बीच रहना चाहती हूँ।

मेरा गाँव मेरा बचपन

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               अब फिर से बचपन की ऊँगली थामने का मन करता है। अब फिर से ख्वाबो में कागज़ की किश्तियां चलाने का मन करता है। अब मेरा गाँव मुझे बहुत लुभाता है। फिर से चुराई कच्ची कैरिया खाने का मन करता है। वो गाँव की सरहद का बूढ़ा बरगद , आँगन का नीम मुझे सपनो में उकसाते है। और मिलने को बुलाते है। इस रेतीली दोपहर में अब भी मेरी माँ मेरे लिए मट्ठीया तलती है और भेज देती है। किसी अपने के हाथ मेरे आने की मनुहार के साथ। अब हाथो की मेहंदी रचती नहीं , अब बातो की पहेली सूझती नहीं। अब फिर से गाँव का हर अपना याद आता है। अब फिर से गाँव जाने का मन करता है।                            कन्हैया ये तेरी मुरली की तान , जिन्दगी                            जिन्दगी की उड़ान फीकी सी लगती है।                            हर होंठो की मुस्कान क़र्ज़ चुकाती सी                            लगती है।                            कभी फुरसत मिले तो आना इस धरती                            पर फिर से                            यहाँ हर एक जिन्दगी उधार की जिन्दगी                            जीती सी लगती है।7

जिन्दगी तेरी मेरी

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               ये नाउम्मीदी की किरणें ये बरखा की सीलने तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है। ये बंद कमरों की बातें ये आसमां से टपकती रातें तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है। ये रिश्तों की उधड़ी सिलाई किस्तों की कमाई तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है। ये अपनों के ताने गैरों के सिरहाने तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है। ये जिन्दगी की करवटे उम्र की सिलवटे तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है। ये बुनियादी जरूरतें बैंको की नसीहतें तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है।            मौत की ख्वाइश में जिन्दगी को तू लाश न कर            मौत तो एक सच्चाई है। तू चाहे या न चाहे आयेगी            जरूर            इसलिए जिन्दगी की दौड़ में तू आज की खुशियों            को दफ़न न कर !