संदेश

जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लघुकथा : आड़ी-तिरछी रेखाएं

चित्र
कुछ आड़ी - तिरछी रेखाएं खींच उसने माँ के आगे कॉपी बढ़ा दी। " मम्मी देखों मैंने गुलाब का चित्र बनाया "   'अरे वाह बहुत सुंदर बनाया है आपनेे '। और बनाओ, ये बोल उसकी मम्मी अपने काम में वापस व्यस्त हो गई। वो कभी कोई अड़ा - तिरछा फूल तो कभी चार लाइनें खींच किसी जानवर की आकृति बनाता जाता और लगातार अपनी मम्मी को दिखाए जा रहा था। और उसकी मम्मी बिना देखे ही और बनाओ बोल अपने काम में लगी रही। मम्मी देखों ये मैंने  " मम्मी " बनाया है। " अरे दिखाओं तो " मम्मी देखती रह गई ! उसने बस " मोबाइल " के चार डंडे खींच दिए थे और मम्मी  की  "गोल " बिंदी बना दी थी। और खुद दूर खड़ा हो गया था चार आंसू के साथ। " ये आपने क्या बनाया है "  मम्मी बनाया और आपका फोन बनाया बनाया है मम्मी, । और आप दूर जाकर क्यों खड़े हो गए थे ? " क्योंकि आप मोबाइल से ज्यादा प्यार करती हो मम्मी मुझ से कम। उसकी मम्मी की आँखों में भी अब आँसू थे, और उसने अपने बेटे को गले से लगा कर कहा मुझे माफ़ कर दो बेटा मैं मोबाइल से नहीं आपसे ज्यादा प्यार करती हूँ। बेटा मासूमियत के साथ बोला

लघुकथा : शापित गड्ढे

गड्ढे  में गिरती दुनिया  कोरोना ने हम सबको गड्ढे में डाल दिया। अब बस मिट्टी की भराई बाकी है। बरसात का मौसम 2, 4 दिनों में आने वाला है, पर दिहाड़ी मजदूर नहीं मिल रहे नगरनिगम वालों को। भ्रष्ट अफ़सर और मुंहलगे ठेकेदार समझ नहीं पा रहे है अब क्या किया जाए। एक अफ़सर दूसरे अफ़सर से बोल रहा है....। कम्बख़्त ये वीआईपी लोग समझते क्यों नहीं अभी कोरोना काल है। ये सड़क के गड्ढे अभी कैसे भरे? बस निकाल दिया  सड़क पंचनामा। ठेकेदार मजदूर सब गायब है, अब ये सड़क क्या हम भरे जाकर। अधिकतर मजदूर अपने गांव, देहात, शहर लौट चुके है। सारा निर्माण अधूरा पड़ा है। गांव- देहात से अब मजदूरों को कैसे लाये। अब उन्हें कंधे पर बिठा कर तो लाया नहीं जा सकता है। अब क्या करें? दूसरा अफ़सर मुझे एक उपाय सुझा है इस समस्या का समाधान शायद इससे निकल जाए। पहला अफ़सर जल्दी बताइए उपाय जान गले मे अटकी हुई है। तो सुनिए.... इस सड़क पर कल ही एक एक्सीडेंट हुआ है। एक लड़के का, बोल देते है उस वीआईपी के चमचों को कि वो कोरोना पॉजिटिव था। वो खुद ही अपना रास्ता बदल लेगा या आना ही कैंसिल कर देगा। बढ़िया उपाय सोचा है आपने। चलो इस उपाय को आजमाते है। इन वीआईपी

लघुकथा : सबकी लाड़ली लाड़ो

चित्र
कमाल की आंखे थी उसकी, गहरी, काली, बोलती आंखे जैसे सारी बातें आंखों से ही कह देगी। सारे घर की लाडली लाड़ो,  यही नाम था उसका लाड़ो। उसके जन्मते ही दादी ने ये प्यारा नाम रख दिया था उसका। लाड़ो सारे घर मे इतराती फिरती थी, जैसे उस जैसा कोई और है ही नहीं। माँ ने भी उसे खूब सर चढ़ा लिया था। तीन भाइयों में इकलौती जो थी। पापा, दादा, दादी, माँ सबकी जान उसी लाड़ो में बसती थी। वो जरा सी खांस भी दे तो दादा-पापा की लड़ाई हो जाती थी।  ' इसे अभी तक डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाया तूने '। लाड़ो ने 12 वीं अच्छे नम्बरों से पास कर ली थी, तो उसे एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन भी मिल गया था। अब लाड़ो के पैर जमीन पर नहीं टिकते थे। रोज नई ड्रेस पहन कर खूब सारा काजल लगा कर कॉलेज जाने लगी थी वो।  उसे कहाँ कुछ पता था, वो तो बस यूं ही बिना बात सहेलियों संग खिलखिला कर हँस पड़ती थी। यही आदत उसे ले डूबी। एक दिन पार्किंग में वो अपनी सहेली के साथ उसकी स्कूटी लेने गई तो चार सड़कछाप लड़को ने दोनों को छेड़ दिया। " वाह क्या हँसती है ये पीली ड्रेस वाली लड़की " लाड़ो ने उन्हें घूर कर देखा और एक साधरण सी गाली उन पर चिपका दी। लड़के

क्रोध की अग्नि में जलता व्याकुल मन

चित्र
क्रोध की अग्नि में जलता व्याकुल मन अंगारे सा दहकता है। विचार शून्य हो जाते है। हम खुद को छला हुआ महसूस करते है। हर बात में क्रोध हावी रहता है। कभी मरने का मन तो कभी बदला लेने का मन करता है। सामने वाले को उसकी हक़ीकत बता देने का मन करता है। पर हक़ीकत में सब हमारी ही गलती होती है। हम क्यों दूसरों की बातों में आकर खुद का सर्वनाश करते है। पहले बात मान कर फिर क्रोध का घूँट पी कर, खुद को तड़पाते है। खुद को जलाते है। हम क्यों ऐसा करते है। क्रोध का रंग इतना गाढ़ा क्यूँ होता है? क्रोध तपती दोपहर सा क्यूँ होता है? क्रोध हमारे विचारों को खा क्यूँ जाता है? क्रोध में भूख-प्यास क्यूँ मर जाती है? क्रोध में हम खुद का ही नुकसान क्यूँ कर लेते है? क्रोध में उदासी क्यूँ लिपटी होती है? क्रोध रेतीली आंधी सा क्यूँ होता है? क्रोध में इंसान अपना ही सर पत्थर से क्यूँ टकराता है? क्रोध ने कई जीवन निगल लिए। मेरा भी जीवन क्रोध ने निगल लिया। क्रोध खारे समुंदर जैसा होता है, जहाँ सिर्फ जहरीली, विचार शून्य संवेदनाएं होती है। क्रोध बहुत काला होता है। जैसे अमावश की रात में बीहड़ का सूनापन। जंगल की सांय-सांय करती आवाज जैसा। कु

लघुकथा : निर्जला अरी ओ निर्जला

चित्र
निर्जला अरी ओ निर्जला ~~ सुबह-सुबह कहाँ मर गई, अभी तक करमजली ने चाय का ग्लास नहीं पकड़ाया है। इसके माँ - बाप ने नाम भी सोच - समझ रखा है " निर्जला " ऐसा लगता है महीनों से इसने रोटी नहीं खाई है। सुखी लकड़ी सी काया वाली लड़की। मुआ मेरा बड़ा बेटा जाने इसमें क्या देख ब्याह लाया। जरा आंधी आ जाये तो कम्बख़्त लड़खड़ाने लगती है। लगता है, अभी हवा में उड़ जाएगी। लो आ गई महारानी, ये सुबह - सुबह कहाँ गई थी। आधा घँटा हो गया मुझे चिल्लाते हुए,  मेरी चाय कहाँ है ? उसी का इंतजाम करने गई थी माँ जी,   इंतजाम करने ? अरी चाय का कौन सा इंतजाम करने गई थी ? चाय गैस पर बनाती है,  और चायपत्ती, चीनी, दूध, अदरक सब घर में रखा है। गैस खत्म हो गई थी माँ जी सो पड़ोसन के यहाँ  चाय बनाने गई थी।   ' देर हो गई '। ला चाय ला, सुबह - सुबह सारा दिन खराब कर दिया तूने। रात को नहीं बता सकती थी किसनवा को कि गैस खत्म होने वाली है। कहा था माँ जी, तो उन्होंने कहा पड़ोसन के यहाँ जा उस बुढ़िया के लिए चाय बना लाना। फिर जब सूरज चढ़ आएगा मैं सिलेंडर ले आऊंगा। क्या कहा तूने, किसनवा ने बुढ़िया कहा मुझे, हाँ माँ जी! वो पड़ोसन भी कह रही

चाँद का गुमान

चित्र
किस्सों की दुनिया भी क्या अजीब दुनिया है। सच, कौतूहल, और कल्पना सब मिलकर हम पर जादू जैसा असर करता है। मनोविज्ञान की भाषा में  " कल्पना सच से अधिक ताकतवर होती है, और ये कल्पना ही एक दिन सच बनती है। चाँद और पृथ्वी के बीच का गुरुत्वाकर्षण रहस्य। विज्ञान ने बता दी चाँद की असलियत। तो मन ने सोचा उधार की चाँदनी पर इतना गुमान क्यूँ? मंदिर- मस्जिद पर टँगा.. सब व्रतियों को ये इतना तड़पाता क्यूँ है? एक कविता चाँद पर... ऐ चाँद तुम्हें खुद पर  इतना गुमान क्यूँ है? आसमान में झूलते मीनारों को छूते सबकी कल्पनाओं में बूंद-बूंद क्यूँ टपकते हो? तुम तो प्रेम का शिखर हो, फिर झील में डूबते क्यूँ हो? कांसे के थाल में भरे दूध जैसे हो, फिर उबड़-खाबड़ पिंड जैसे क्यूँ हो? तुम प्रेम का आलिंगन फिर बूढ़ी माई के पीछे छिपते क्यूँ हो? तुम भावना प्रधान फिर दूर से सबको ठगते क्यूँ हो? तुम पूनम का चाँद.. तुम दूज का चाँद.. तुम चौथ का चाँद.. फिर कलंक का चाँद.. तुम बनते क्यूँ हो? तुम जल का कारक ग्रह फिर तुम पर जल क्यूँ नहीं? तुम इतने कठोर फिर गुमान किस बात पर। बताओ ऐ चाँद अपना ये रहस्य अपना ये गुमान। बताओ तो सही?

तुम भी न अम्मा !

चित्र
अम्मा तुम्हारे घुटनों का दर्द बढ़ता जा रहा है, थोड़ा चल फिर लिया करो। तुम्हारे घुटनों की ग्रिस खत्म हो गई है। अरे मेरे घुटनों के पीछे क्यूँ पड़ी रहती है री। जा तेरी माँ से वो लहसुन का तेल मेरे घुटनों के लिए बनाया है, ले आ जाकर। और सुन वो सूजी के हलवे की भी कही थी उससे, जरा देखियो उसने बनाया की नहीं। अम्मा तुम तो बहुत चटोरी हो गई हो जब देखो तब हलवा बनवाती रहती हो मेरी माँ से। तुम्हें पता है वो हमेशा कैसे गुस्से में हलवा बनाती है तुम्हारे लिए। हाँ पता है री, रहने दे गुस्से में वो तो उसकी आदत है हमेशा भुनभुनाने की, पर हलवा बड़ा स्वाद बनाती है री तेरी माँ। सुन अब बातें कम कर जरा देख कर आ हलवा बना की नहीं। अच्छा आती हूँ देख कर,  'और वो हलवे का भरा कटोरा ले आई, अम्मा ये लो तुम्हारा हलवा।  " वाह क्या खुश्बू है देशी घी की, हाँ सो तो है पर तेरी माँ ने इसमें ज़रा बादाम कम डाले है।" अम्मा तुम सच्ची बहुत चटोरी हो गई हो जब देखो तब दांत दर्द का बहाना बना हलवा खाती हो। अरी सुन तूने हलवा खाया की नहीं,  नहीं अम्मा मैंने तो सुबह बासी रोटी पेट भर खा ली थी।  बासी रोटी,  मेरी लाडो रोज बासी रोटी खा

अंतः वस्त्र

चित्र
आज सुबह-सुबह फिर उसकी माँ से कहासुनी हो गई। उसे माँ पर बहुत गुस्सा आ रहा था। आज माँ ने उसे कुछ ज्यादा ही सुना दिया था। आखिर उसकी गलती ही क्या थी, बस इतनी की वो सुबह-सुबह नहाने के बाद अपने अंतः वस्त्र बाहर खुले आंगन में उसे सूखा आई थी। माँ के कहने पर उसने अंतः वस्त्र अपने सलवार-शूट के नीचे सुखाने शुरू कर किए थे, लेकिन अक्सर जब भी मौसम खराब रहता उसके अंतः वस्त्र सूखते नहीं थे और उसे वही गीले अंतः वस्त्र पहनने पड़ते थे। माँ को उसने बहुत समझाया लेकिन माँ नहीं समझी उल्टा उसे ही हमेशा डाँट देती थी। " माँ कहती  ये क्या तमीज है सब आ जा रहे है और तूने ये कपड़े यहाँ खुले में सुखा दिए सब क्या सोचेंगे "? कल को ससुराल जाएगी तो हमारी नाक कटवायेगी माँ अक्सर उसे ये बात बोलती थी। माँ को अब बहुत परेशानी रहती थी उन्हें बच्चेदानी में सिस्ट हो गई थी बहुत ज्यादा, इसलिए डॉक्टर ने उन्हें बच्चेदानी के ऑपरेशन के लिए कह दिया था। कारण वही गीले अंतः वस्त्र पहनना और उन वस्त्रों को धूप नहीं लगना। पर माँ ये बात समझने को तैयार नहीं थी। अक्सर इसी बात पर सुबह उसका उसकी माँ से झगड़ा हो जाता था। पर उसने भी सोच लिया

प्रेमपत्र

चित्र
प्रेमपत्र~~ उसके फोन का सिग्नल नहीं मिल रहा था, इसलिए वो थोड़ी झल्लाई और दो चार गालियां मन ही मन जिस कम्पनी का फोन था उस कम्पनी को दे, छत पर चली गई मोबाइल के बटन को दबाते हुए।  "एक तो नेटवर्क नहीं मिल रहा और अभी ही इसे लड़ाई करनी थी। कोई बात नहीं सुनता मेरी, वो बड़बड़ाती जा रही थी।" "10 बार कहा है एक नया मोबाइल दिला दे पर नही प्रेम की पींगे बड़ी-बड़ी और एक मोबाइल भी नहीं दिला सकता। बस लड़वा लो लड़ लेगा हर समय न वक्त देखता न वार देखता है।  "हाय रे मेरे फूटे नसीब, अब कैसे समझाऊंगी इसे सिग्नल मिलते ही फिर लड़ेगा। कहेगा मेरा फोन क्यों काटा। किससे बात कर रही थी। मुझे समझती क्या है"। वो ये सब बड़बड़ाती छत के एक कोने से दूसरे कोने में यूँ ही तेज तेज चल रही थी। उसकी नजरें मोबाइल पर ही गड़ी हुई थी। छत पर एक छोटा पत्थर का टुकड़ा पड़ा हुआ था, इससे उसके पैर में चोट लग गई और वो वही गिर पड़ी। उसके गिरते ही किसी ने उसे सम्हाल लिया था। अरे तुम वो देखती रह गई.....! "हाँ तो क्या बड़बड़ा रही थी तुम मैं तुम्हारी एक बात नहीं सुनता, मोबाइल भी नहीं दिलाता, और हाँ हर बात में लड़ता हूँ क्यों? अरे त

वर्षा जल

चित्र
शज़र पर बैठी गौरैया आसमान ताक वर्षा जल पी रही थी। जाने क्या खुद से ही कह रही थी। शायद कह रही थी  "आज आसमान इतना साफ कैसे है"। "आज सूरज इतना उजला कैसे है"। "आज चहुँ और इतनी शान्ति कैसे है"। वो समझ नहीं पा रही थी। ये क्या हो रहा है। पर आसमान में बैठा भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। इंसान को उसकी करनी की सजा दे वातावरण शुद्ध कर रहा था। पहाड़ी पर एक छोटा सा गांव था। उसमें एक घर में एक बालक अपनी माँ के साथ रहता था उसका नाम श्रवण था। पर वो न सुन नहीं सकता था, न देख सकता था। उसकी माँ ही उसकी दुनियां थी। एक दिन बहुत वर्षा हो रही थी तो उसने अपना मुंह खोला और वर्षा जल पिया। ऐसा वो जब भी वर्षा होती थी करता था। उसे वर्षा जल बहुत पसंद था। लेकिन आज वो वर्षा जल पीते ही माँ से जा लिपट गया। और इशारों में माँ से कहने लगा माँ मैं अमृत पी आया। वो देखो बाहर बरस रहा है। माँ ने उसका माथा चूम लिया और कहा बेटा आज भगवान ने हम इंसानों को सबक सिखा प्रकृति को फिर से स्वच्छ कर दिया है यही अमृत है।

हथिनी की मौत

चित्र
दक्षिण भारत के केरल राज्य में एक गर्भवती हथिनी की विस्फोटक भरा अनानास खाने से मौत ने मानवता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. कुछ शरारती तत्वों ने हथिनी को विस्फोटक भरा अनानास खिला दिया. मानव और जानवरों के बीच संघर्ष में मानवता के पतन की ये एक और कहानी है. वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक हथिनी की उम्र 14-15 साल रही होगी। घायल होने के बाद वो इतनी पीड़ा में थी कि तीन दिन तक वेलियार नदी में खड़ी रही और उस तक चिकित्सीय मदद पहुंचाने के सभी प्रयास नाकाम रहे। इस दौरान उसका मुंह और सूंढ़ पानी के भीतर ही रहे। उस मूक पशु का दर्द शब्दों में ब्यान नहीं हो सकता है। विस्फोटक भरा अनानास खाने से उसके जबड़ो को गम्भीर चोट पहुंची थी। उसके दांत भी टूट गए थे। वो तीन दिन तक पानी मे खड़ी रही थी और सिर्फ पानी ही पी पा रही थी। और अंत में वो इस दुनियां से चली गई। इंसान राक्षस बन गया है।  यह एक घटना नहीं, बल्कि हत्या है। एक गर्भवती हथनी को बम से भरा हुआ अनानास खिलाया गया जिससे उसकी ये दुर्दशा हुई। मलप्पुरम इस तरह की घटनाओं के लिए बदनाम है। यह पूरे भारत में सबसे हिंसक जिला है। यहाँ पर लोग सड़कों पर जहर फेंक देते है, ताक

किराए की कोख

किराए की कोख----- सुनेत्री एक 30, 35 साल की आम ग्रहणी थी। पति जिग्नेश एक बिजली मिस्त्री, और उसके 2 बेटे थे। जिग्नेश की कमाई से घर में सिर्फ दाल-रोटी ही बन पाती थी। बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। पर सुनेत्री अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना चाहती थी। पर उसके पास इतने पैसे नहीं थे, इसलिए वो थोड़ी परेशान सी रहती थी।  और इसी बात को लेकर अक्सर उसके और जिग्नेश के बीच झगड़ा हो जाता था। एक दिन बातों-बातों में उसकी पड़ोसन ने बताया तू भी पैसे कमा सकती है। मेरी भाभी की तरह किसी और का बच्चा जन कर। वो आवाक रह गई।  किसी और का बच्चा, हाँ सुनेत्री बहन किसी और का बच्चा तुम उन्हें उनका बच्चा पैदा करके दो वो इसके बदले तुम्हें पैसे देंगे। मेरी भाभी ने ऐसा ही किया था। मुझे तो आज मेरी माँ ने सब बताया है। और वो सब लोग अब पैसे लेकर, और दुआएं लेकर बहुत खुश है। मेरी समझ में तो कुछ नही आया बहन, देखो सुनेत्री बहन अगर तुम भी पैसे कमाना चाहती हो तो बताओ। अभी तुम पैसे कमा सकती हो। क्योंकि अभी तुम बच्चा पैदा करने की सारी शर्तो पर खरी उतरती हो। तुम कहो तो मैं अपनी माँ से बात करूँ तुम्हारे लिए?  नहीं बहन रुको पहले