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सितंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

स्त्री...!!!

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जिंदगी की उषा में घुलती निशा में बिखरती सारे इल्ज़ाम सहती परिवार की धुरी कहलाती। स्त्री...! क्या सारे बिखराव की जड़ यही है? जिसने सारे परिवार को जोड़े रखा। आकाश ताकती घर सजाती सारी थकान को मुठ्ठी में बंद किये, सबकी थाली सजाती उसकी थाली खाली रह जाती। अनेको प्रश्नों से घिरी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी। परिवार की धुरी कहलाती। स्त्री...! जब परिवार का मुखिया एक पुरुष है, तो बिखराव की जिम्मेदार एक स्त्री कैसे हुई? रूढ़ियों से संघर्ष करती स्त्री.. हर परिस्थिति में ढलती है। गणित समझ नहीं पाती, फिर भी घर का गणित सम्हालती है। अपने मन मे उलझी सबकी उलझने दूर करने की कोशिश में लगी रहती है। दूसरी जिंदगी को जन्म देने वाली स्त्री.. अपनी जिंदगी को अभिशाप मानती है। या ये कहे कि हमारा दोगला व्यवहार उसे ये मानने पर मजबूर करता है। हर स्तर पर पुरुषों के बाराबर फिर भी दोयम दर्जे की नागरिक कहलाती है। उसे बचपन से ये सिखाया जाता है कि ज्यादा मत बोला कर, चुप रहा कर तू चुप रहेगी तो परिवार आसानी से चला पाएगी। जिसको बोलने तक कि आजादी नहीं उस पर बिखराव का लांछन क्यों? आज की बात करे

कठपुतली...!!

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सुनों न~~ मुझे यूं परम्पराओं को निभाने का आदेश दे रंगमंच की कठपुतली सा न बनाओ। मेरी प्रशंसा कर झाड़ पर न चढ़ाओ। सुनो न~~ तुम सागर मैं चट्टान हूँ, मुझसे न टकराया करो। मैं बहती नदिया पत्थर गोल करती हूँ। वाणी के ये नुकीले वाण हृदय छलनी करते है। मुझ पर ये वाण न चलाया करो। सुनो न~~ यूं सबके सामने मेरी आलोचना न किया करो। मेरे प्रेम को छल का नाम न दिया करो। हर घटनाक्रम का दोषी मुझे न ठहराया करो। सुनो न~~ मैं तो नींव में गड़ी पत्थर हूँ, मीनार की खूबसूरती में नजर कैसे आऊं। मैं तो अहसास हूँ, तेरी नजरों में कैद हूँ, बाहर कैसे आऊँ। प्रेम की कीमत पर प्रेम हूँ, हृदय से बाहर आ कैसे धड़कूँ !!

ख़्वाब गुलमोहर के....!!!

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ये हल्के वजनदार ख़्वाब... स्वप्नीली आंखों में कैसे आ गए...। ये गजलों का जादू... तुम्हारे प्रेम की पुष्पवर्षा में भीग... गुलाबों सा खूबसूरत कैसे हो गया...। ये खूबसूरत रिश्ता... वर्षा में भीग... सौंधी मिट्टी सा कैसे महक रहा है...। ये तन्हा दिल को क्या हो गया है...। भीड़ में भी सिर्फ तू नजर आ रहा है...। आईने में सूरत मेरी... आंखों में तू नजर आ रहा है...।। तेरी तस्वीर से... कुछ गुफ़्तगू की मैंने...। उमस भरी जिंदगी में... कुछ तेरे नाम की हवा की मैंने...। एक पैगाम लिखा है..,, तेरे नाम...। तू कहे तो... बारिश संग भेज दूं... तेरे आंगन...। सुख-दुख के... रंगीन लिफाफे पर... अंगूठे से तिलक लगा... इत्र में भिगो... तेरी देहरी पर... रख आई हूँ...। तू चाहे तो... पढ़ लेना... न चाहे तो... किसी पेड़ के... नीचे रख देना... पर मुझे ये न बताना... मेरा भ्रम रहने देना...।।