संदेश

मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ऐ जिंदगी तू ऐसी क्यूँ .........है।।

चित्र
 जिंदगी कुछ कड़वी, कुछ खट्टी, कुछ मीठी, रेगिस्थान में भटकते रेत सी जिंदगी, कभी आँधियों में उड़ती रेत सी जिंदगी, सांसो के पिंजरे में कैद जिंदगी, तड़पती है.... घुटती है..... मचलती है...... रोती है...... पर मौत नसीब नहीं, दफ़्न ख्वाइशों की जिंदा मिशाल बन अश्क़ो में बहती है, सिसकती है। जिंदगी ऐ जिंदगी हमें इतना क्यूँ रुलाती है। ऐ जिंदगी हमें इतना क्यूँ तड़पाती है। हम तो तेरे गुलाम है। एक हँसी को हमें इतना क्यूँ तड़पाती है। ऐ जिंदगी जिस्म को तो आदत है। नंगे पांव अंगारों पर चलने की, पर रूह अश्क़ो में पिघल कर रोती है। तड़पती है चैन की तलाश में बैचेनियाँ पलती है। ख्वाइशों के दंगल में उम्मीदें तड़पती है। एक सिरहन सी उठती है, एक आह सी निकलती है, और नम आंखो के किनारे कुछ मोती आ लुढ़क जाते है। कुछ कोनो पर ठहर जाते है। कुछ होठों की अंदर घुट मर जाते है, कुछ रूह को मार कर जिंदगी जीते है, कुछ वक़्त के हासिये पर मिट जाते है, ऐ जिंदगी तू ऐसी क्यूँ है, ऐ जिंदगी तू ऐसी क्यूँ है??

राधा-कान्हा......

चित्र
 न पाए चैन उर मेरा ठिकाना ढूंढता है। क्यों नयन भर ताक लेने का बहाना ढूंढता है। क्यों भरे उर कोष में आंसू बिछाए पाँवड़े पलकें तुम्हारी नित्य परछाईं दीवाना ढूंढता है। क्यों? मेरी बोझिल सांसे ....भर आये यू ही बैठे-बैठे नैना.... ....तेरी याद जो सताये तो तेरा मुखड़ा निहारूँ....तेरा रस्ता देखू.....तेरा ख़्वाब सजाऊँ...... यू ही बैठे-बैठे तेरी तस्वीर पर सर रख सो जाऊँ....... तेरी प्यार की .... .....बारिश में भीग जाऊँ......बस इतनी दुआ है....... तेरे प्यार में तुझ संग जी जाऊँ....... तुझ संग मर जाऊँ..... तू आदि.......💐 तू अनन्त......💐 तू जिस्म......💐 तू रूह......💐 तू ख्वाइशों का दर्पण.......💐 तू इश्क़ का समर्पण........💐 तू सच्चाई का फ़रिश्ता......💐 तू चाहतों का फ़रिश्ता.......💐

मेरी नज़रो में तुम बसे तेरी नज़रो में मैं बसी.....

चित्र
 कोरे पन्नों पर मेरे लफ़्ज भीगते है........ मेरे अल्फाज़ो पर तेरा जादू चलता है........ मेरी नज़रो के तुम सलीके....... मेरे अश्क़ो के तुम पैबंद........ मेरी रूह के तुम चैन........ भरी बरसात में मोगरे के गीले बूटे से तुम और मैं.......चल रहे थे यू ही किसी रास्ते पर जाना कहाँ था दोनों को मालूम नहीं पर दोनों खोये थे......... सड़क किनारें बिखरे पलाश के सुर्ख लाल दहकते फूलों में..... आसमां से छिटकती बूंदों में....... ढलते शाम में पेड़ो की ओट में छिपते सूरज की लालिमा में.......एक दूसरे का हाथ हाथों में लिये हुए,  कुछ ख़मोशी समेटे हुए,  कुछ मदहोशी लिए हुए, बस खोये थे एक दूसरे में......... ये बहकी सी शाम, ये लहकी सी रात, ये महकी सी सुबह, "मैं उसकी महोब्बत में महकी हूँ मैं भीग के उसके प्यार की ओस में वो पूरा बरस जाता तो न जाने क्या हो जाता" कहाँ-कहाँ छिपाऊ अब मैं उसकी चाहत का हिसाब.......!!!

मेरे हर एहसास में तू छिपा........

चित्र
 तेरे एहसास में जो मिला मेरा एहसास तो इस कदर दुनिया से बेख़बर हो गए हम की हमें अब न दिन का पता चलता है न रात का बस तेरी यादों के सहारे अब ये दिन ये रात कटते है अपनी तन्हाइयों में हम अक्सर तुझसे नजदीकियां बढ़ाते है और तेरी बातों को गले से लगा कर सो जाते है तेरे होंठो की मदहोशी के कायल है तेरे अल्फाजों के कायल है तेरे एहसास से महोब्बत की है तेरे जज़्बात से महोब्बत की है तेरे महकते अल्फाजों से महोब्बत की है जो तुमने हँस कर दिया है तुमसे मिलना तो एक ख़्वाब सा लगता है इस लिये तेरे इंतज़ार से भी महोब्बत की है मेरे पलकों के चिलमन में तेरे ही ख़्वाब सजे है मेरी सांसो की महकती फिजाओं में तुम ही फिर रहे हो मेरे होंठो की बिखरी लाली में तुम ही मुस्कुरा रहे हो मेरे हर अंग में तुम ही खिल रहे हो मेरे चेहरे पर चढ़ा ये सिन्दूरी रंग भी तेरा है मेरे दर्पण में रूप भी तेरा सजा है मेरे आँगन में गुलाब भी तेरे नाम का खिला है मेरे आँगन के धुप में भी तुम छाया में भी तुम मेरी हर रात में तुम दिन में तुम मेरी दोपहर भी तुम शाम भी तुम अब और क्या कहूँ मेरा तो जीना भी तुमसे मरना भी तुमसे मेरा त

राधा कान्हा प्रेम रस.......

चित्र
"निशब्द" हो जाती हूँ, कान्हा तेरी मुरली की तान सुन....... चाँद-तारों की मुझे जरूरत नहीं, मुझे तो बस तेरे प्यार की बेसुमार दौलत चाहिए, दिल भरता नहीं तेरी तस्वीर से, मन करता है चुरा लू किस्मत की लकीर से, तेरी महोब्बत में सांवरे मेरा रूप निखरा है, मेरी हथेली में सांवरे तेरा रूप सजा है, झूम लू तेरी बाँहो में जो तू एक बार आ जाये, जी लू हजार बार जो तू एक बार आ जाये, मेरे होंठो से तेरी ही महक आती है, मेरे होंठो से तेरे ही सुर निकलते है, क्या बताऊँ......सखी रे........ सजन संग कैसे कटी मेरी रात....... कैसे उलझी लट कैसे उलझी अंखिया....... कैसे कहूँ मन की बतियां....... कुछ मैं उलझी कुछ श्याम....... बैरी ने खोल दीनी अँगिया........ तन खोला...... मन खोला...... अंग-अंग खोल समाय गयो श्याम...... कैसे कहूँ मन की बतिया सखी रे........ भिज गयी...... भिजाय दइ..... भरी रस की पिचकारी...... सब लूट गयो बैरी...... कैसे कहूँ...... का से कहूँ मन की बतियां सखी रे........ कैसे कहूँ....... मंदिर मिलन मास लगता है। प्रिय खास, नैन में समा के पीर क्यूँ जागते हो, कारे कजरारे नैन घ

मेरे मन ये बता किस और चला है तू.......

चित्र
कच्चे धागों में उलझा मेरा मन तू ये बता, क्या पाया क्या खोया है तूने, बस तन में रहा और सांसो से चला है, जीवन की पगडंडी पर ,अक्सर कंटीली झाड़ियों में अटक कर रोया है, मधु की तलाश में अक्सर ही गैरो की महफ़िल में भटक कर भी अकेला ही रहा है, जीवन सफ़र अब भी बहुत लंबा लग रहा है, खोखले रिश्तों में अभिमन्यु सा फंसता लग रहा है, आसमां से गिरती रात में चादर में सिमटा ख़्वाबो की दुनियां से सुकून चुराता सा लग रहा है, खुरदुरी दुनियां से अपना हिसाब मांगता सा लग रहा है, सागर की लहरों से टकराकर अपनी जीवन नइया सम्हालता सा लग रहा है, उदास वादियों में तेरा गला रुंधा आवाज़ खोई सी ला रही है, टिक-टिक करती घडी की सुइयां भी अब तुझे डराती सी लग रही है, तन्हाई के आलम में पलकों को आंसुओ में दफ़्न करती सी लग रही है, आहिस्ता-आहिस्ता ये रात ढल रही है, कई अनसुलझे सवालात में ये सिसक- सिसक रो रही है, कच्चे धागों में उलझा मेरे मन ये बता तू किस और चला है तू.......किस और चला है तू........!!!

कान्हा संग राधा.....राधा संग कान्हा.........

चित्र
क्या लिखू तेरी तारीफों में....अब शब्द कम पड़ रहे है.......... तेरी तारीफों में अब हम कम पड़ रहे है....... इश्क़ का परिन्दा मुझ से उड़ कर तुझ पर जा बैठा है....... तेरे इक भरोसे पर मेरा हो बैठा है...... बना दे नसीब ऐ खुदा थोड़ी सी इनायत कर दे जो मांगी थी जो दुआ कुबूल कर ले उनके आसरे पर जिंदगी की रौनके नसीब कर दे.......... तेरी महोब्बत में चुपचाप ये जिंदगी गुजार देंगे.......तेरे कदमो तले बहारो के फूल बिछा देंगे.......... दिल की बात होंठो से न कह पाएंगे बस निगाहों से बयां कर देंगे........ उनके हर ज़ख्म पे होंठो से होंठ मिला सारी मधुशाला पी जायेंगे.....उन्हें अपने आंचल में छिपा सुकूं दे जायेंगे.......... उनकी सांसो से अब हमारी महक आती होगी हमें क्या पता हमें तो बस उनकी सांसो की महकती धड़कने सुनाई देती है........ उनके होंठो से निकलती हँसी सुनाई देती है...... ज़मी को बरसते बादलों का सुकूं .......है...... सागर को नदियां का सुकूं.......है....... आसमां को उड़ते पंछियों का सुकूं......है...... बागों को खिलती कलियों का सुकूं....... है...... पहाड़ो को गिरते झरने का सुकूं......है..

हिसाब-किताब जिन्दगी का.....

चित्र
 रिश्वत की जिन्दगी, उधार की सांसे...... कितनी बिगडेल है हमारी आदते...... हमें बस खुद की परवाह औरो की नहीं...... वक़्त के दरिया में हम बहते मुसाफ़िर, न हमारा कोई ठौर न ठिकाना...... हम बस मंज़िल की तलाश में भटक रहे..... और सफ़र के कांटो को बुहार रहे...... जिंदगी आंधी में उड़ती रेत सी...... जिंदगी सांसो का हिसाब चुकाती सी...... ये ज़मी ये आसमां ये नज़ारे सब यहाँ है..... बस हम और हमारी जिंदगी कहाँ है.....न तू जाने न मैं जानू..... फिर भी हम जी रहे है, वक़्त के दरिया में बह रहे है, तपती दोपहर में छाया तलाश रहे है, जिंदगी के नूर को हीरा चाट-चाट पूरा कर रहे है, आंसुओ से भीगी पलकों को जाम में डूबा कर सुकून तलाश रहे है, रितुओ से हम बदल रहे है और इल्ज़ाम मौसम को दे रहे है, अपने गुनाहों को छीपाने हम मंदिर-मस्जिद-गुरूद्वारे जा रहे है , और जिंदगी को पतझड़ में रेत सा उड़ा, बारिशों का सुकून तलाश रहे है, हम ये क्या कर रहे है, बस भीड़ में भटक जिंदगी की दौड़ पूरी कर रहे है, अपने सांसो का हिसाब-किताब पूरा कर रहे है, रिश्वत की जिंदगी के बुनियादी रिवाज़ निभा रहे है, ग़ैरों को इल्ज़ाम दे खुद को

खवाइश.................

चित्र
 तेरी खवाइश....मेरी चाहत....... दोनों मिला अपना आशियाना सजाते है........ चाँद-सितारों से छत.....रंगीन मोतियों से दीवारे सजाते है...... तेरी-मेरी बातों के कुल्हड़ से......सोंधी सी जो खुशबू उड़ी है उससे अपने चेहरे सजाते है...... तेरी तकरार मेरी तकरार से चूल्हा जला.... उस पर चाय बना चुस्कियां लेते है.....और ग़ैरों को जलाते है........ शाम ढले जब हमारे आंगन चांदनी उतरेगी..... हम-तुम आँखों-आँखों में छइ-छप खेलेंगे...... और अपना आशियाना महकायेगें...... चुलबुली शरारतों से अपना बिछोना सजायेंगे......ग़ैरों को जलायेएँगे....... और रात के आँगन में चुपके से एक-दूसरे की बाँहो में सो जाएंगे..... ये कैसी खवाइश है.....जो दस्तक दे रही है...... उड़ते बुलबुले सी हमें बहका रही है..... और हम-तुम नील गगन में उड़ रहे है..... महकती फिजाओं संग फिर रहे है..... न तुझे कुछ होश है.....न मुझे कुछ होश है..... हमें तो बस एक-दूसरे में होश है..... एक-दूसरे में जोश है....होश है......!!!

एक अँधेरा लाख सितारें सा तू........

चित्र
 उलझनें मेरे मन की, उलझने तेरे तन की, ये कैसी भाषा है न तू समझता है न मै समझती हूँ, फिर भी एक दूसरे को समझते है। डूबी है कस्ती तेज है धारा....... जीवन की कस्ती को चलाने में तेरा है सहारा। ये मेरा कैसा है सहारा जो रोज़ मुझे देता है छिप-छिप सहारा। खुद को तड़पा कहता है तुम खुश तो हो न, तुम रोइ तो नहीं। अब उस पगले से कैसे कहूँ तेरी हँसी से मैं..... हँसती हूँ...... तेरे रोने से मैं रोती हूँ...... तेरी हर बात से..... बैचन होती हूँ....... तेरी ये राते, तेरी ये सौगाते...... तेरा यू मुस्काना...... अब मेरे जीवन का किनारा सा लगता है...... मेरे जीवन उजियारा सा लगता है....... एक अँधेरा लाख सितारे सा तू लगता है...... अगर तू न होता तो मेरा ये अँधेरा कैसे दूर होता...... तू चाहे कैसा भी हो क्या फर्क पड़ता है...... मुझे तो बस मेरे सुकून से मतलब है.... तेरी हँसी में ठहरी मेरी हँसी से मतलब है..... मुझे तो बस तेरी मुस्कान मेरी ख़ुशी से मतलब है.....!!!

एहसास तेरा-मेरा.....

चित्र
एक दिन एक एहसास हुआ...... नीले गगन का नील अम्बर सा तू मेरा सबसे ख़ास हुआ...... तेरे शब्दों से मन तर हुआ....... तेरे नर्म बातों से मन झूम उठा....... तेरे ख़यालो से मन नाच उठा...... ऐसा लगा तुझे भेजा मेरे रब ने........ जो लम्हें मुझे खुशियों के मिले है वो तेरी दुआओं से मिले है...... कुछ इस तरह तेरे इश्क़ का रंग मुझ पर चढ़ा है....... में भीग रही बारिशों में गुलाब सी तैर रही ज़ाम में बर्फ सी....... अब ऐसा लगता है इस जन्म ये नशा न उतरेगा........ बस एक सिलसिला चलेगा तू मेरा होगा मैं तेरी होऊँगी......... एक अधूरा ख़्वाब मुक्कमल होगा........ तेरे जिस्म में मैं रहूँगी मेरे जिस्म में तू रहेगा अपना हर सपना अब पूरा होगा ...... कुछ काँटों भरा सफ़र तय कर हमें हमारी मंजिल मिलेगी....... तेरी-मेरी उदास जिंदगी का पतझड़ अब उड़ रहा है,  कुछ गुलाब कुछ मोगरा महक रहा है..... तेरी-मेरी सतरंगी बातें से ये हमारा जहाँ इंद्रधनुषी हुआ है......... भरी बरसात में ज़मी-आसमां रंगीन हुआ है...... तेरी चाहत मेरी जिंदगी बनी है........ मेरी चाहत तेरी जिंदगी बनी है........ अब हम दोनों गुलशन में खुसबू ब

सकारात्मक विचार........

चित्र
हकीक़त में हम सब डरपोक है, हमारा डर भी अजीब, हम खुद को डराते है ये सोच-सोच कर की अगर कुछ हो गया तो हमारा- हमारे परिवार का क्या होगा, हमारे बच्चों का क्या होगा, जबकि हकीक़त में ज्यादा कुछ नहीं होने वाला लेकिन हम उल्टा-सीधा सोच-सोच कर हर नकारात्मक चीज को खुद की तरफ आकर्षित कर लेते है। अनजाने में और जो हम सोचते है वो हो जाता है अकस्मात ही हमारे साथ वो घटना घट जाती है और हम कहते है देखा मैंने कहा था न ऐसा होगा । जैसे की हमने खुद खुद की भविष्य वाणी की हो की हमारे साथ गलत होगा और हो गया। फिर हम खुद डरते है औरो को डराते है। क्या ये सोच सही है........ नहीं ये सही नहीं....... हमें खुद पर विश्वास होना चाहिए की सब ठीक होगा जो भी होगा हमें तो ये स्वीकार करना है। की कान्हा सब ठीक करेंगे कोई अपने बच्चो के साथ बुरा नहीं करता है। और हम सब कान्हा से जन्मे है कान्हा के बच्चे है। और कान्हा हमारा परमपिता है। सहंसिलता हमारा गुण होना चाहिए, आत्मविश्वास हमारा तेज़, सकारात्मकता विचार हमारे नसों में दौड़ना चाहिए, एक मुस्कान के साथ हमें जीना आना चाहिए, वक़्त का कुछ पता नहीं कब किस करवट बै

विचारों का आहता........

चित्र
जीवन पगडंडी मुश्किलों भरी...... सफ़र ये उलझनों भरा........ किस और जाना ये भी न पता..... इस रात की सुबह कब होगी ये भी न पता...... पर फिर भी हम सब चल रहे है आगे बढ़ रहे है....... कभी न कभी तो जरूर मिलेगी हमें हमारी मंजिल....... .................................................................................. तेरी-मेरी राहे जुदा..... हम-तुम यू ही टकरा गये भीड़ में चलते हुए..... तूने मुझे देखा मैंने तुझे देखा..... बस कुछ सपने आँखों में आ गये..... और हम-तुम ख़यालो में डूब गये न जाने कब से.....न जाने कब तक....... .................................................................................... उम्मीदों की केसरी हसरतें...... संगमरमरी मीनारों सी बातें..... अब सब कुछ खोया-खोया सा लगता है....... जैसे आसमां में अमावस्या का चांद रोया-रोया सा लगता है......... .................................................................................... तेरी चाहत मेरे प्यार की दीवानगी सब एक सी है...... बस अब तू रोना नहीं क्योंकी ये तो पावन है, पवित्र है, मिले न मिले क्या फर

प्याला छलकते दर्द का..........

चित्र
  ये जो प्याला भरा है.......... मेरे नसों से बहते दर्द दर्द से भरा है...... जबां से निकली आह से भरा है...... तेरी यादों की हिचकियों से भरा है...... और न तड़पा इन हिचकियों ने जीना मुहाल कर रखा है....... हर किसी की नज़र मेरे चेहरे पर आकर टिकी है, हर कोई पूछ रहा ये नूर किधर से आ रहा, मैने भी कहाँ कोई नूर है, तो वो हँस देते है और आगे बढ़ जाते है और कह देते है हमें सब पता है....... अब तो मैं भी सोच रही क्या सच में ये बात सही है, मेरे बारे में सबको पता चल गया है, ये कैसी अजीब सी उलझन है, ये कैसी अजीब सी तड़पन है, न तू मेरे पास, न मैं तेरे पास, पर फिर भी तेरी ज़मी मेरे पास, तेरा आसमां मेरे पास, तेरी हर मुस्कान मेरे पास, आ चल मद्धम बारिश की बौछार में कुछ दूर हाथों में हाथ थामें कुछ दूर चलते है, भीगी राहो पर अपनी नजरें टिका भीगी पलकों को भीगी राहो का सुकून देते है, अपनी भीगी बातों से एक-दूसरे को हंसा देते है, एक भीगे से एहसास का सुकून देते है। चलो कुछ काले बादलों के साथ उड़ते है, बंजर ज़मी सींच देते है, एक बंद गुलाब में बूंदों संग अंदर चले जाते है, गुलाबजल सरीखे बन महक जाते

बेबस सलीका जिंदगी का........

चित्र
 बिन कहे जो सब कुछ समझ जाये,   चुप रह कर जो सब कुछ सह जाये,   ये मत सोचो वो कमज़ोर है,   वो तो बस सबकी खैर चाह रहा है,   काबिलियत उसमें भी कम नहीं,   इंसानियत उसमें भी कम नहीं,  खैर गुजरे वक़्त में यू खुद को दफ़्न न करो,  कुछ तो नया करो.......   चलो एक पहल करते है कुछ दूर यू ही चलते है,   कुछ तो मोज़ो के साथ चलते है......   कुछ मोज़ो के साथ लड़ते है.......   लहरों पर अपनी नईया खेते है......   तूफानों से अपनी नईया बचा किनारे   लगाते है......   

दरिया में बहती सोच.......

चित्र
 जिंदगी कभी मधुरिम, कभी बोझील..... न जाने इसके कैसे-कैसे सितम, लगता है अब संवरे की जिंदगी, अब संवरेगी, पर नहीं संवरती जिंदगी, हमें क्यूँ सब कुछ नहीं मिलता, न जाने क्यूँ, पर क्या हुआ जो कुछ न मिला, कभी हमें रेत सी फिसलती लगती जिन्दगी तो कभी सागर में हिचकोले खाती नैया सी लगती, ये उखड़ी सांसे अब भी जीना चाहती है, पर ये दुनियावी रीति-रिवाज उसे जीने नहीं देते, ऐसा लगता हमें कोई कंबल में लपेट मार रहा है, और अगर शोर हुआ तो लोग पूछेगें तुम्हे क्या हुआ फिर हम कुछ नहीं बोल सकते है, और हमारी सुनेगा भी कोई नहीं, सभी के समझौते अलग-अलग पर सभी इस समझौते तले घुटते है, मरते है रोज तिल-तिल, जैसे  सैंडविच में आलू दो परतों के बीच पड़ा-पड़ा सिसक रहा हो, मधुरिम जिंदगी की आस में हम ओस की बूंदों से जम गये है, सड़को पर रेत से बिखर गये है !!!

तेरी रूह से मेरी रूह का नाता कोई पुराना लगता है........

चित्र
 मेरी रूह से तेरी रूह का नाता कोई पुराना लगता है, यू ही कोई हमनवा, हम प्यारा नहीं लगता है, सागर किनारे रेत पर जब मैंने तेरा-मेरा नाम लिखा लहरें आयी और दोनों को बहा ले गयी तो मैंने लहरों से पूछा ऐसा क्यों तो लहरों ने कहाँ अगर फिर एक को ले जाती तो एक अकेला यू ही तड़पता न जीता न मरता इसलिए मैं दोनों को साथ बहा ले गयी। जब भी तुमको याद किया मेरी रूह ने, तू जिस्म से होकर गुजरा है। मेरी खुशी में तू शामिल है इस कदर अगर तू हल्का सा भी मुझे पुकारे तो मेरी सांसे थम जाती है, धड़कन रुक जाती है। मेरी दुआओं में बस तू रहता है। जैसे पूजा में फूल होते है, चन्दन होता है। मेरी हाथों की लकीरों में मैंने तेरा नाम लिखा है, बस सबसे छिपकर तेरे नाम पैगाम लिखा है। ये कैसे सिलसिले हुए है, इतनी दूर होकर भी तू मेरे करीब बैठा है। तेरी हर बात का एहसास है मुझे कब रोया, कब सोया, कब बेचैन हुआ है। हम बस कह न पाये यू ही तेरी पलकों पर अपने होंठो से शब्दों की बारिश करते रहे की तुझे कुछ तो चैन आये। हम सिर्फ इसलिए हँसते रहे की तुझे भी हँसी आये, तेरी तन्हाई, तेरी ख़ामोशी में कुछ तो कमी आये, मेरी बस एक

राधा कान्हा का प्यार.........

चित्र
  बंद पलकों के ख़्वाब तुम....... हर सांस के एहसास तुम........ सामने न सही पर मेरे आस-पास तुम....... नज़रो से दूर सही पर नज़रो की प्यास तुम....... मेरे नर्म नाज़ुक लबों पर तेरे लबों की मुस्कान ठहरी है....... तेरे चेहरे की हंसी मेरे चेहरे पर आकर रुकी है....... मेरे जज्बातों में खुशबू तेरे प्यार की मिली है....... मेरी चूड़ियों में झंकार तेरी शरारती उंगलियों की मिली है....... मेरे आंचल में हया तेरे एहसास की सिमटी है...... मेरे पायल में झंकार तेरे बेसबर अदाओं की मिली है....... मेरे नूपुर में दमक तेरे हसीन इशारे की मिली है....... मेरी नज़रे उनकी नज़रो से क्या मिली रौशन फिजायें हो गई....... जिंदगी भर की खुशी उनसे इक इश्क़ में मिल गयी....... मेरी सारी खुद्दारी अब उनसे जा मिली....... मेरी हर खुशी अब उनसे जा मिली....... मैंने अपनी किस्मत के दरवाज़े पर बस उनका नाम लिख दिया...... अपने हर सवाल पर बस दीदार उनका लिख दिया..........

शबनमी बूंदे बरखा की.....

चित्र
 सुन कुछ तेरी फ़रमाइशें है, कुछ मेरे आरजू, दोनों को मिला गुलदस्ता सजाते है, कुछ गुलाब कुछ मोगरे की महक से कमरा सजाते है, क्या पता कल क्या हो, अपनी हर जिद्द आज ही पूरी कर लेते है, बरखा से पिघलती बूंदे चुरा चेहरे पर खुशी सज़ा लेते है, फूलों से शबनमी मधु चुरा अपने होंठ गीले कर लेते है, सागर से मोती चुरा मोतियों का हार बना लेते है... और एक दूसरे के गले में डाल देते है, चांद से चांदनी चुरा कमरे की छत सजा लेते है, सितारों से हलकी झीनी रौशनी मांग अपनी चादर के किनारें झालर लगा लेते है, और इस चादर तले शब्दों के शहद से एक दूसरे को बहलाते है, मानते है, एक-दूसरे को बाँहो का हार पहना सुकून से सो जाते है, एक सुनहरी याद अपने जीवन में जोड़ लेते है!!!

उलझने सांसो की......

चित्र
 बेचैन रूह, घुटती सांसे, पिंजरे में कैद जिस्म, हर तरफ उसकी मौत के सौदागर घूम रहे, फिर भी उड़ने को मचल रही, उसकी हँसी गुजरे वक़्त में दफ़्न है, फिर भी बेतहाशा हँस रही, खुद को खुद के द्वारा छल रही..... आग उसमें टहल रही..... तूफान उसमें हिलोरें खा रहा...... आँधिया उसमें विचारों की उड़ रही..... शोंखिया उसमें बारिश के बूंदों सी मचल रही...... एक रात बीती एक सुबह बीता..... फिर नये सुबह की तलाश में भटक रही......!!!

हम-तुम ठहरे यू ही एक-दूसरे की निगाहों में........

चित्र
राहे तेरी-मेरी जुदा पर मंजिल शायद एक, अजनबियों की महफ़िल में अजनबियों से, हम-तुम मिले और कुछ बातें हुई, तेरे-मेरे दरमियां, तू धीरे-धीरे मुझमें मिला...... मैं धीरे-धीरे तुझमें मिली....... ये बर्फीली पहाड़ियों पर जमी कुछ ओस की बूंदे..... कुछ सफेद झीनी चादर...... जैसे चाँद ताकत ज़मी को, ज़मी ताकती चांदनी को, और रात के आंगन मिलन हुआ हो तेरा-मेरा, तू ठहरा यू ही ताकता रहा मुझे, मैं ठहरी यू ही ताकती रही तुझे, कभी लगता डर तन्हाई का, कभी लगता डर जुदाई का, पर तेरे सामने आते ही सारा डर उड़ जाता है दूर गगन में...... छिप जाता है दूर चमन में...... खो जाता है फिजाओं में....... सूरज की लाली कान्हे को प्यारी, रात की उजली चांदनी राधे को प्यारी, दोनों खोये आसमां से टपकती कुछ नीली, कुछ दूधिया चमकीली रात में...... बहे आसमां से गिरते झरने में...... जा मिले पहाड़ी की ओट में छीपे सागर में..... खिल उठे नर्म बातों की सर्दियों में....... गा उठे मधुर मिलन के गीत..... एक-दूसरे की बाहों में........!!!!

सच्ची प्रीत तेरी-मेरी........

चित्र
  मेरे शब्दों की पाती में तुम छीपे...... मेरे पलकों की हया में तुम छीपे...... मेरे विचारों में लाली तेरे ओज की...... मेरे चेहरे पर चमक तेरी शरारती निगाहों की...... मेरे मन में उमंग तेरे मजबूत कांधे की....... बहोत दूर-दूर तलक यू ही साथ-साथ चलना तुम..... जो हो कोई शिकायत मुझसे बस दो कदम तेज चलना तुम और आंखे देखा देना तुम......... जो हो कोई गिला मुझसे तो होले से हाथ दबा देना तुम, और चुटकी काट लेना तुम....... तुम पर साथ न छोड़ना तुम...... तेरे लबों की हँसी देख मैं जीती-मारती हूँ..... बस यू ही तेरे ख़यालो में खोई रहती हूँ.....मैं कभी पास आना और गले लगा लेना तुम मुझे...... जो पास न आ सको तो मुझे बुला लेना तुम....... मेरी प्रीत है सच्ची..... मुझसे कभी दूर न जाना तुम........

तुम कोन जो मेरे अपने से लगते हो........

चित्र
  एक दर्द मिटा, एक सिरहर मिटी, एक ख्वाइश फिर जिंदा हुई, तेरे आने से मैं फिर गुलज़ार हुई, ऐसा लगा जैसे किसी ने अपनी आँखों से मेरे लबों को सहला दिया हो, मेरे कानों में चुपके से कोई सुर छेड़ दिया हो, मैंने भी चुपके से कुछ बूंदे बरखा की चेहरे पर महसूस कर ली, तुम कोन हो जो मेरे तन-मन में समाये हो, लगता जैसे कोई भंवरा फूल का रस पी भरमाया हो, कभी तुम लगते बर्फ की सिरहन...... कभी तुम लगते मोगरे की छुअन....... तुम कोन जो मेरे मन मस्तिष्क में लगते महुआ की मादकता भरता हुआ सा, मुझे अपने आगोश में भरता हुआ सा, तुम कोन जो मैं रोऊ तो आंखे दिखाते हो, हंसू तो मेरे बालों को सहलाते हो, मुझे प्यार से थपथपाते हो, तुम कोन जो मेरा हर नाज़-नखरा उठाते हो, और गुस्से में भी हंस कर मुझे संवारते हो, तुम कोन जो मेरी हर ख्वाइश पूरी करने की कोशिश करते हो, मेरा हर खारा घूंट पीने की कोशिश करते हो, तुम कोन...... तुम कोन...... जो मेरे सबसे अपने से लगते हो........!!!

विचार राधे-कान्हा के........

चित्र
  तुम्हे खुद पर एतबार मुझे तुम पर एतबार...... रात को चाँद पर एतबार चाँद को सूरज पर एतबार...... बादलों को सागर पर एतबार सागर को नदियां पर एतबार..... शाम को ढलते सूरज पर एतबार....... और मुझे मेरे कान्हा पर एतबार........... अपने राधे पर एतबार........ शाम के हल्के-हल्के सुरूर में तुम, जाम के हल्के-हल्के सुरूर में तुम, मेरी हर बात में तेरा अक्स मिला, तू नहीं मेरे पास, पर मेरे आस-पास तू, मेरी हर सांस में तू बसा, किस्तो में घिसटती जिन्दगी का हिसाब न माँगा कर, बेचैन रूह से तेरी याद का जबाब मत माँगा कर, बस ये समझ ले तेरी याद में ये जिन्दगी रो रही है, और अपनी सांसो का कर्ज चुका रही है, मौत आये न आये हर पल मौत की दुआ कर रही है, ये कौन है जो तेरे-मेरे बीच आ गया, जिसका कोई मजहब नहीं लगता है, बस तेरी-मेरी दोस्ती का दुश्मन सा लगता है, तू चिंता मत कर न अब मैं कोई चिंता करुँगी क्योंकी अब हमें खुद पर एक-दूसरे पर गहरा यक़ी हो चला है, जैसे लहरो पर हिचकोले खाती नाव चल रही, मन के विश्वाश पर तू चल रहा मैं चल रही, आओ कमरे में कैद हवाओ को कुछ देर बहार छोड़ आते है। जिस्म में कैद सा

एक हौसला दरिया के किनारों को भी मिला देता है.......

चित्र
  नायाब जिंदगी मिलती नहीं रोज़// बार-बार, नयनन की बाती चमकती रोज़ बेहिसाब//पर आत्मविश्वास से, बन तू कभी मिट्टी का कच्चा दिया, खुद जल रौशनी दे औरो को। कभी बन सुराही पक्की मिट्टी की, सबको दे शीतलता। कभी बन जा दरिया, कभी बन जा साहिल, दे हौसला खुद को, औरो को इस रुनझुन मौसम की रुनझुन सलवटे, निकाल फेक अपने जीवन से। रख विश्वास सब ठीक होगा, क्यूँ सोचता है हर वक़्त बुरा होगा। हार वाली बातें मत सोच, बस जीत सोच जो सोचेगा वो मिलेगा। ये आसमानी सपने ज़मीनी हकीकतें, सब जीवन का हिस्सा है, जीना पड़ता है इसे। तू बस रख खुद पर यक़ी, खुद पर हौसला, सब पार कर लेगा तू ये रास्ता, ये पगडंडी, तू खुद भी हैरान होगा, खुद के विश्वास पर खुद के यक़ी पर। हर निगाह यहाँ बेचैन है....... हर गला सूखा है.......... बस एक दरिया की चाह में हर मुसाफ़िर फिर रहा है, भटक रहा है। खाली हाथ आये थे, खाली हाथ जायेंगे, फिर किस बात का रोना किस बात का तराना है। बस जो मिला वो सर माथे लगाना है, कान्हा सा बन जाना है। ये जिंदगी का सफ़र...... उम्मीदों का कहर....... हमें तोड़ते है, हमें बिखेरते है........ ये रोज़ की तनहाई