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विचारों का आहता

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           चलो सड़को पर बिखरे टेशू के फूलों से मिलते है। और कुछ देर के लये विचारों के आहते से बाहर आते है। मेरे मन में अब भी धरा में लिपटी रेत में मेरा बचपन मुस्कुराता है। पर फिर उम्र हो चली है। ये सोच कर मन घबराता है। दुनियां की दौड़ में शामिल होने के लिये तुमने और मैंने अपने अंतस को नोंचा है। वो अंतस अब हमसे हमारा हिसाब मांगता है। और हम तुम बेबस उसको दुनियांदारी का पाठ समझाते है। और बेचैन होते है। जिन्दा रहने के लिये हर पल मरना जरूरी तो नहीं बस खुद पर थोड़ा विश्वास करना जरूरी है। कि तुम भी प्रकृति की अनमोल कृति हो तुम सा भी कोई नहीं है। जरूरी नहीं कि हर महंगी चीज़ अनमोल हो कुछ दोस्ती भी अनमोल होती है। जो हमें यू ही मिल जाती है। जिसका कोई मोल नहीं होता है। बुरे वक़्त में बस तुम थोड़ा सा धैर्य रख लो अच्छा वक़्त खुद चला आयेगा रात के बाद सुबह सा। हम तुम खुद को यू ही जाया करते है। फिजूल की बहस में और किस्मत का रोना रोते है। माना सबकी किस्मत एक सी नहीं होती पर हारने से पहले एक कोशिश तो कर सकते है। और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। अगर फिर भी हार जाये तो भी एक सुकून सा तो मिलता
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          कहते है कि ये दर्द भी एक नशा है। अगर किसी को इसकी आदत हो जाये और ये न मिले तो बदन में सिरहन सी उठती है , होठ बुदबुदाते है । और दिल सोचने पर मजबूर हो जाता है। कि ये मुझसे दूर कैसे हो गई इसका और मेरा तो चोली दामन का साथ था और इसी सोच से मजबूर होकर वो नये दर्द की तलाश में जुट जाता है। तेरे हाथों को छू कर जो उड़ गई वो बारिश कि बूंद तेरे होठों को छू कर जो उड़ गई वो हँसी तेरे माथे को छू कर जो उड़ गई वो मुस्कान ले आ फिर से अपने सपनों में क्योंकि क्या पता कल क्या हो तू आज ही जी ले अपना हर सपना। हर दर्द एक आंसू छलकाती है हर गम में एक उदासी मेहमान सी बनकर आती है। और अक्सर दिल की बातें होठों तक आकर खामोश हो जाती है। ये कैसा सफ़र है। यहाँ न मंजिले है। न राही बस फैली है। बेख़ौफ़ सर्पीली राहे और उनमें रेगिस्थान में रेत सा भटकता तू।

आंसू

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       रो कर मिलता क्या है। यहाँ सिर्फ कुछ क्षणों की दिलासा फिर हमें कमज़ोर मान कर हमारा मज़ाक उड़ाया जाता है। हमें खुद पर तरस खाना और दूसरों पर आश्रित होना सिखाया जाता है। आँसुओ को औरतों का गहना और मर्दो की कमज़ोरी माना जाता है। पर एक बार भावनाओं में बहकर औरतों के इस नायाब गहनें को तुम भी पहनना मन हल्का हो जायेगा तुम्हारा भी। माना कि आँसुओ में वज़न नहीं होता पर एक बार बह जाये तो मन हल्का जरूर हो जाता है। आंसू बेरंग होते है पर उनमें एहसास छुपा होता है दिल की गहराइयों का। और आँसुओ की कीमत जननी हो तो चले जाना माँ के आंचल तक वहाँ न जाने कितने आंसू कैद है। वहाँ जा कर बस इतना कहना माँ तुम कैसी हो और खुद देख लेना माँ चुपके से अपने आँसुओ को कैसे आंचल में छुपाती है।और मुस्कुराकर कहेगी मैं अच्छी हूँ तू बता कैसा है। आज माँ की याद कैसे आ गयी। आंसू न होते तो दर्द की कीमत भी नहीं होती और अगर दर्द की कीमत न होती तो खुशियों का बेशक़ीमती एहसास भी हमें महसूस नहीं होता !            
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            कभी अपनी मर्जी से कभी गैरों की मर्जी से जिंदगी का इम्तिहान दिया हमने पर हमें क्या पता था सिर्फ इम्तिहान देने से किस्मत नहीं बदलती है। हाथों में भी किस्मत की लकीर होनी जरूरी होती है। बेगानों की महफ़िल में तमाशबिनो का मेला सजा है। गलती से भी उस और न जाना तुम नहीं तो सारी उम्र पछताओगे क्योंकि ये बेगाने तुम्हे अपना बना कर ठग लेंगे और तुम सारी उम्र सोचते रह जाओगे की तुम्हारी गलती क्या थी। क्योंकि इनका तो काम ही है। शक्ल देखकर तिलक करने का दुनिया में अपनी पहचान बनाने मैं भी गई पर बहुत जल्दी समझ गयी यहाँ हुनर से ज्यादा सूरत पहचानी जाती है। इंसानियत से ज्यादा खूबसूरती पहचानी जाती है। तुम अब किसी से प्यार न करना क्योंकि प्यार एक ऐसा धोखा है। जिसमे हम खुद को खुद के द्वारा छलते है। ये प्यार भी सिर्फ एक आदत है। जो बदलती रितुओ सा बदलता है। और कुछ नहीं तुम सारी दुनियां से लड़कर बेकार खुद को तकलीफ देते हो ये दुनियां तुम जैसी बिलकुल नहीं है। यहाँ तो वो जीतता है। जिसके पास दौलत की खनक ज्यादा है जिसके पास पहचान की खनक ज्यादा है। यहाँ इंसान गिरगिट सा रंग बदलता है।
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चाँद की शीतलता ओढ़े नर्म सर्दीयों में तारों की छांव में चमकते जुगनुओं की रोशनी में माँ ने मुझे गर्म शाल में लिपटी कुछ लोरियां सुनाई थी उन लोरियों की गर्माहट में आज मैंने भी अपने नन्हें को लपेट कर सुकून से सुलाया है। और माँ की याद को ज्यो का त्यों अपने सीने में छिपाया है। तेरे आने से मुझे मेरे होने का सुकून मिला था क्योंकि तुझमें मेरा ही अक्स मिला था तेरी वो नन्ही हथेली का स्पर्श मुझे आज भी याद है। क्योंकि उन नन्ही हथेली को थाम कर ही मैंने फिर से जीना सिखा था। ये तुम्हारी जिंदगी है। तुम जैसे चाहो इसे जी सकते हो। कभी आंधियो में रेत से उड़ कर , तो कभी बागों में गुलाब बनकर पर रेत सड़को पर उड़ती है। और गुलाब सबके दिलों में खुशबू बनकर महकता है। आँखों की कैद से आँसुओ को रिहाई देने मैं बारिश में भीगी होठों की कैद से सिसकियों को रिहाई देने मैं सुरों में घुली बादलों संग उड़कर मै आसमान में पहुँची और काली घटाये बन खूब बरसी ।

वेलेंटाइन डे

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मेरी शादी में मेरी मर्जी शामिल नहीं थी मैने तो बस एक समझौता किया था। सबकी ख़ुशी के लिए तो मुझे रोना कैसे आता अपनी विदाई में। सबकी चाहत थी मुझे रोता देखने की विदाई की रस्म अदायगी में पर मैं खामोश थी। ससुराल पहुँचकर सारे रीति- रिवाज़ पुरे करती गई बिना किसी उम्मीद के। सबने खूब तारीफे की , मेरी सुंदरता का खूब बखान भी किया। और बड़ी सफाई से उलहाना भी दिया मेरे पिता द्वारा दहेज़ न दिये जाने का। समय यू ही बीतता गया और मेरी शादी के साल भी यू ही बढ़ते गये मेरी ख़ामोशी कभी-कभी ज्वाला बनकर फूटती और मेरे लबो से लावा बहता। सब मुझसे दूर होते जाते और मैं अकेली रेगिस्तान में भटकते रेत सी विचारो में जमीन आसमान का अंतर मुझे अब कुछ ज्यादा ही खलता। पर अपना धर्म समझ मैं पति से माफ़ी मांगती और बाते करती। और फिर से उनका न बंद होने वाला लेक्चर सुनती मन ही मन रोती और हाँ मे सिर हिलाती जाती मुझे लगता चलो अब सब ठीक है। ऐसे में एक पूरा सप्ताह वेलेंटाइन डे कि रस्मे निभाता एक जोड़ा मुझे अपने पड़ोस में मिला। मुझे तो उनसे पता चला कि प्यार कैसे करते है। पहले फूल , फिर चॉकलेट , फिर टेडीबेयर , फिर परपोज़ , फिर किस्स और

संघर्ष

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         सुबह ने आँसुओ सौगात दी शाम ने अकेलेपन की और रात ने खुद से बाते करने की क्या हुआ जो ये दिन यू ही ढल गया सुबह से रात हुई और फिर रात से सुबह अब जाकर मैंने जाना है खुद की कमजोरियों को और तुम्हारे छल को मैं तो वही हूँ जो मैं कल थी पर तुम बदल गये हो ये बदलाव भी अच्छा है मेरे लिए क्योंकि मैं एक औरत हूँ मुझे आज भी जीने के लिए संघर्ष करना है मैं ये भूलने लगी थी  तुम्हारा शुक्रिया  मुझे मेरा विश्वास लौटाने के लिए            

डर के आगे जीत है

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मुश्किलें रही को आसान लगी कुछ रास्ता तय करने पर कुछ दूर जाकर वो रुका अपनी थकान मिटाने को और एक चाय की दुकान पर चाय पी फिर उसने सोचा मेरी मुश्किलों की वजह तो मैं खुद था । मेरा डर था डर भी कैसा जिन्हें मैं जानता तक नहीं बस उनकी परवाह कि लोग क्या कहेंगे ?? एक खतरनाक सत्य यह भी है । कि अगर हम रस्ते पर चल रहे है। और हमें वहाँ दो मूर्तियाँ पड़ी मिले एक राम की और एक रावण की तो हम राम की ही मूर्ति ही उठायेगे और घर चले जायेंगे क्योंकि राम सत्य है एक निष्ठा है । राम सकारात्मकता का प्रतीक है । और रावण नकारात्मकता का। लेकिन अगर हम रस्ते पर चल रहे है। और हमें दो मूर्तियाँ मिले एक राम की और एक रावण की पर रावण की मूर्ति सोने की हो तो हम रावण की मूर्ति उठाकर घर ले जाएंगे क्योंकि वो सोने की है। है न.... मतलब हम सत्य और असत्य सकारात्मकता और नकारात्मकता अपनी सुविधा के अनुसार तय करते है। 25 साल की उम्र तक हमें ये परवाह बहुत कम होती है कि लोग क्या कहेंगे 50 साल की उम्र तक एक डर में जीते है कि लोग क्या सोचेगे 50 साल के बाद पता चलता है कि हमारे बारे में कोई कुछ नहीं सोचता है। और सोचना चाहत

झरने से बहते शब्द

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शब्दों के झरने में बहते है ! कुछ शब्द नदियों में बहते मोती से तो कुछ गंदे नालों में बहते कीड़े से मोती मन को सुकून देते है ! तो कीड़े मन को नोचते है ! खोखला कर देते है! पति पत्नी का रिश्ता भी तो ऐसा ही होता है ! पति मन को छील जाता है ! और पत्नी रोती हुई अपनी किस्मत को कोशती रह जाती है ! और पति को कुछ फर्क भी नहीं पड़ता है ! सचमुच हमारे शब्द हमें एक पहचान देते है ये तो हम सब जानते है ! पर फिर भी हम गलत शब्दों का इस्तेमाल तो करते ही है ! कुछ तो आज की भाषा ही बन चुके है फिर चाहे सुनने में अच्छे लगे या बुरे हमें इसकी परवाह ही कहाँ है ! हमें तो बस बोलना है ! कितना अच्छा होता अगर हम कर्णपिर्य होते ! रिश्तो की कड़वाहट खुदबखुद हमसे दूर चली जाती !              मैंने सुनी तुम्हारी वाणी तो लगा तुम बेहद खूबसूरत               हो ! मन के कोने में  मैंने तुम्हारी एक अलग छवी               गढ़ ली और तुम्हारा सानिध्य पाने को मेरा मन              बेक़रार होने लगा !             जब पास गया तो तुम बेहद साधारण थी और होंठ              काले ! पर जब तुम्हारे होंठ खुले तो लगा यहाँ सा

पहचान तेरी मेरी

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जिनको मेरी क़दर नहीं अब मुझे भी उनकी फ़िक्र नहीं मैंने खुद के साथ खुद का परिचय कराया खुद के साथ खुद का वक़्त बताया बड़ा अच्छा लगा मैंने तन्हाई में ख़ामोशी के साथ बैठकर खुद को खुद की ग़ज़ल सुनाई बड़ा अच्छा लगा मैंने दुनियां की इस भीड़ में चलने बजाय  खुद को खुद के साथ घुमाया बड़ा अच्छा लगा मैं खुद को सबसे किसी न किसी बहाने मिलाती रही  रिश्ते और भी गहरे बनते गये बेवजह मिलने से बड़ा अच्छा लगा मैं पुरे की ख्वाहिश मे बहुत कुछ खोती जा रही थी अब जाकर मैंने जाना आधा चाँद भी बेहद खुबसूरत होता है भरी जेब से तो दुनियां भी भीड़ में पहचान लेती है और जेब खली हो तो अपने भी मुकर जाते है मैने ये भी जान लिया है अब मैंने जाना मैंने जो कुछ भी पाया जो कुछ भी खोया है सब यही रहने वाला है क्योंकि मेरा भी आखरी ठीकाना तो मिट्टी का घर ही है

Bekhare ful

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      Tumne n jane kitne galtiya ke h      Kuch jankar kuch anjane may Par tum fir bhe achay ho bahut achay Jatay ho kyu kyuke  Ye sab tumnay waqt ke hato majbur Hokar dil se rote hue kiya h  May janti hu tuhay tum se jayada Muze pata h tum bhe ye sab jantay ho Fir khud se naraz kyu ho Bus thoda sa muskura do please  Khud ko bekhare fulo sa nahi Juganuo sa andhere may chamakne wala bana lo  Rosani kam ho ya jayada koi fark nahi padta kyuke       Rosani ho rosani hoti h