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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक शाम

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एक शाम तुम लेकर आना मेरे लिए थोड़ा वक्त अपने लिए थोड़ा आराम। दोनों बैठ चाय की चुस्कियों में बिखरा दिन समेट लेंगे। तुम करना थोड़ी नशीली बातें मैं थोड़ा शर्मा कर रसोई में चली जाऊंगी। तुम रसोई में भी आ जाना फिर मेरे संग आटे की लोई में स्वाद भरना छेड़खानी का। तुम रात का सकोरा बन जाना मैं ख़्वाब भर पी लुंगी सकोरे में। तुम गाना मेरे लिए एक गीत जिससे बादल भी मचल जाए। तुम थाम लेना मेरा हर मुहर्त मेरे आंसू, मेरी तड़प, मेरी हँसी भी। तुम सागर बन जाना मैं नदिया बन तुममे समा जाऊंगी। तुम सूरज बन नदिया को आगोश में भर लेना। लहरों की चमक में खो जाना।

जिम्मेदारी का बोझ

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चिट्ठी हो तो कोई बांचे भाग न बांचे कोई" जिम्मेदारी का बोझ पड़ते ही कोई भी इंसान खुद ही जीना सीख जाता है। एक छोटी सी कहानी : जिम्मेदारी का बोझ बंगाल में सालों से एक परम्परा रही है। यदि किसी महिला के पति का देहांत हो जाता है तो परिवार वाले उसे वृंदावन छोड़ आते है। ताकि वह अपना बचा जीवन भगवान को याद करते हुए गुजारे, या यूं कह ले परिवार वाले उससे पीछा छुड़ा लेते है। ऐसी ही एक स्त्री वृंदा के पति की मौत हो जाती है। शादी के मात्र 10 वर्ष बाद। घरवाले अपनी कुल की रीत निभाने मतलब उसे वृंदावन छोड़ने पर आमादा हो जाते है। पर वह वहाँ जाना नहीं चाहती कारण उसका 8 साल का बेटा। सब उसे वहाँ जाने के लिए मनाने, डराने, धमकाने, भी लग जाते है। उसका जीवन पति के मरते ही नर्क बन जाता है साथ ही बेटे का भी। वह सबके सामने खड़ी हो जाती है अपने बेटे की ढाल बन कर और फैसला सुना देती है वह कहीं नही जाने वाली। घर वाले उसके खिलाफ हो जाते है। और उसे घर से निकाल देते है। मायके वाले भी उसे आश्रय नहीं देते समाज के डर से। जैसे-तैसे उसको एक आश्रम की मदद मिल जाती है वह अपने बेटे के साथ वहाँ रहने चली जाती है। लेकिन किस

इंदु

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रात के तीन बजे अचानक नींद खुल गई खुद को पसीने से तर-बतर पाया। फिर पंखा तेज कर पसीना पोंछा और दो ग्लास पानी एक साथ गटक लिया। कुछ राहत मिली तो फिर सोने की कोशिश की पर नींद अब नहीं आई। एक अजीब सा सपना जो देख लिया था, मन आशंकाओं से भर गया था। सोचा नींद तो अब आएगी नहीं थोड़ा लिख लिया जाय सो लिखने बैठ गई। एक छोटी सी कहानी..... इंदु..... एक जहीन लड़की पर गरीब घर में जन्म हुआ था। पर सुंदरता के कारण एक बड़े घर में ब्याह हो गया। ससुराल आते ही तानों की बौछार से स्वागत हुआ उसका। ~बड़ी सुंदर है तभी फ़ांस लिया हमारे चिराग को।   कभी सपने में भी ऐसा घर-बार न देखा होगा, बिलाई के   भाग का छींका टूट गया समझों। ऐसे शब्दों से खुद का स्वागत होता देख उसकी सारी खुशी गायब हो गई। कुछ बोल न पाई बस आँसुओ में भीग निःशब्द हो गई। क्योंकि उसके मायकेवाले बहुत खुश थे बेटी का ऐसा नसीब देख। बड़े घर मे ब्याह कर। कुछ ही दिनों में इंदु को उस बड़े घर के चिराग की असलियत पता चल गई। वो ड्रग्स लेता था और उसके कई लड़कियों से सम्बन्ध थे। वो रात की पार्टियों का शौकीन था सो रात घर पर कम ही रहता था। उसकी सास को ये सब पता

सफ़र जिंदगी का....।

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बेतरतीब जिंदगी कभी ख़यालों में उड़ती है तो कभी दुनियादारी में। सफ़र जिंदगी का धूप में चलता छांव में रोता है, कल की फिक्र में। जिंदगी वक्त के पायदान पर लुढ़क बस जरूरतें पूरी करती रह जाती है। और दफ़न ख़्वाईशो की जिंदा मिशाल बनती है। रेलगाड़ी सी जिंदगी मालगाड़ी बन सामान ढोती रह जाती है। हर स्टेशन पर रुक दूसरों को ताकती रह जाती है। जिंदगी की कहानी बहुत लंबी है, पढ़ते-पढ़ते जब बोर हो जाते है तो झुंझला कर अपनी ही जिंदगी को कोस दूसरे किस्से-कहानियों में डूब खुद को ताजा कर लेते है। जिंदगी का सफ़र यूं ही तड़प-तड़प गुफ्तगूं कर-कर सागर की लहरों में डूबो देते है।

किताबघर

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दुछत्ती की छोटी सी किताबघर आज उंगलियों के स्पर्श से चकित हो उठी। धूल की चादर ओढ़े  मुस्कुरा उठी। ईंट-पत्थर के मकान में ये किताबघर कब दुछत्ती पर चढ़ बैठी पता ही न चला। कई किताबें अनछुई थी, सर झुकाए बैठी थी। पढ़ाकू आंखे जो अब उन्हें नहीं पहचानती थी। दो, चार किताबे आज झाड़-पोंछ नीचे ले आई। तो शब्दों का झुंड बोल पड़ा हमारी बेकदरी मत किया करो हम हुड़दंग नहीं करते जीवन संवारते है।

अभागा पत्ता...

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डाल से टूटकर वो पत्ता बहुत रोया फिर किसी शाख से न जुड़ पाया। पेड़ से टूट दर्द से कहराता हवा में उड़ता रहा पर किसी की नज़र में न आया। उड़ता-उड़ता सूखे पत्तों के झुंड में जा पहुंचा। शोर करता पैरों के नीचे कुचला गया। पर किसी को तरस न आया। अभागा पत्ता डाल से टूट माटी में मिल गया पर किसी को रास न आया।

सच के कई पहलू होते है..।

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सच के कई पहलू होते हैं, इसलिए किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सबकी बातें सुननी चाहिए। सीख : कई बार हम सच्चाई जाने बिना अपनी बात पर अड़ जाते हैं कि हम ही सही हैं। जबकि हम सिक्के का एक ही पहलू देख रहे होते हैं। इसलिए, हमें अपनी बात तो रखनी चाहिए, पर दूसरों की बात भी पूरी सुननी चाहिए। इस कहानी से समझें--- एक गांव में छह दृष्टिहीन व्यक्ति रहते थे। एक बार उनके गांव में हाथी आया। सभी लोग उसे देखने जा रहे थे। उन्होंने भी सोचा कि काश वे दृष्टिहीन न होते तो वे भी हाथी को देख सकते थे। इस पर उनमें से एक ने कहा कि हम हाथी को भले ही न देख सकते हों, लेकिन छू कर तो महसूस कर ही सकते हैं कि हाथी कैसा होता है? सभी उसकी बात से सहमत हो गए और उन्होंने हाथी को छूना शुरू किया। उन सबने हाथी के अलग-अलग हिस्सों को स्पर्श किया था। जब उन्होंने आपस में चर्चा करते हुए हाथी का वर्णन  शुरू किया तो जिसने हाथी के अगले पांवों को छुआ था, उसने कहा हाथी किसी खम्भे की तरह होता है। जिसने हाथी की पूंछ को छुआ था, उसने कहा कि वह रस्से की तरह होता है। पिछले पैरों को छूने वाला बोला वह पेड़ के तने की तरह होता है। जिसने कान

नींद

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दिया बाती के बाद सारी थकान हमने सौंप दी इस रात को। बदले में ले ली जरा सी नींद। नींद साथ थक कर सो गई, तस्वीर पर सर रख कर सो गई, नींद ख़्वाब में भटक चाँद के रथ पर सवार हो खूंटी की बुश्शर्ट पर टंग गई। फिर नींद में भटक पहुंच गए एक और नींद में। जामुनी नींद थोड़ी कसैली सी पर फायदेमंद। भोर का सपना था। आज एक मौत देखी थी, मन उखड़ गया था। पर माँ की बात याद आ गई, अब उसकी उम्र बढ़ चुकी है। भोर लाली में उठ चाय की प्याली में नींद थम गई। सूरज चढ़ आया तीखी धूप ख़्वाब से जगा गई। अलार्म की एक आवाज सारी नींद उजाड़ गई।

ध्रुवतारा

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अजीब सा आकर्षण है तुममें तुम्हारी चमकने की आदत अब तक गई नहीं। तुम्हारी रौशनी जब पलाश, और गुलमोहर पर पड़ती है न ये दोनों भी मुझे मुहँ चिढ़ाते है। सुनहरे बाल जैसे नर्म धूप में चमकते है न तुम बिल्कुल वैसे लगते हो। ये रात को चाँद से क्या बातें करते हो तुम? तुम मोती जैसे निर्मल कैसे हो? चाँद जैसे सुनहरे कैसे हो? हीरे जैसे चमकते कैसे हो? ओ मेरे ध्रुव तारे तुम तारों के जंगल में कैसे रहते हो? सूरज के सामने क्यूँ नहीं आते हो? तुम मेरे मन को इतने क्यूँ लुभाते हो? तुम आसमान में कितना सफ़र करते हो? तुम हमेशा चमकीले तारों से क्यूँ घिरे रहते हो? मैं तो शाम से ही तुम्हारी बाट जोहने लगती हूँ, पर तुम रोज नहीं आते। न जाने कहाँ भटकते रहते हो? तुम इतने अच्छे क्यूँ हो? श्रम में तन्मय क्यूँ हो?

लघुकथाएं

ख़लील जिब्रान के मजेदार क़िस्से पढ़िए। लघुकथा :  पुल एंटीओक शहर के एक भाग को दूसरे से जोड़ने के लिए पुल बनाया गया। इसके लिए प्रयोग में लाए पत्थर खच्चरों की पीठ पर लादकर लाए गए थे। पुल के तैयार होते ही एक स्तम्भ पर खोदकर लिख दिया गया था, 'सम्राट एंटीओक्स द्वितीय द्वारा निर्मित।' सभी लोग इस पुल द्वारा आसी नदी को पार करते थे। एक शाम एक युवक ने, जिसे लोग सनकी कहते थे, नीचे उतरकर स्तम्भ पर खुदे संदेश को चारकोल से पोत दिया और उस पर लिख दिया, 'इस पुल के लिए पत्थर पहाड़ो से खच्चरों द्वारा लाया गया। यह पुल नहीं, उन खच्चरों की पीठ है, जो सही मायनों में इस पुल की निर्माता है।' लोगों ने इसे पढा तो कुछ हंसने लगे, कुछ को आश्चर्य हुआ और कुछ ने कहा, 'अच्छा....तो ये उस सनकी लड़के का काम है।'  तभी एक खच्चर ने दूसरे से हंसते हुए कहा, 'तुम्हे याद है कितनी कठिनाई से हमने इन भारी-भरकम पत्थरों को ढोया था? लेकिन आज तक लोग यही कहते हैं कि इस पुल का निर्माण सम्राट एंटीओक्स ने कराया था।' ....... लघुकथा : कविता एथेंस के राजमार्ग पर दो कवियों की भेंट हो गई। मिलकर दोनों को

डाकू

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पढ़िए एक गहरी बात कहती हुई लघुकथा। डाकू...... जवानी के दिनों में मैं पहाड़ियों के पार एक संत से मिलने गया था। हम सद्गुणों के स्वरूप पर बातचीत कर रहे थे कि एक डाकू लड़खड़ाता हुआ टीले पर आया। कुटिया पर आते ही वह संत के आगे घुटनों के बल झुक गया और बोला, 'महाराज मैं बहुत बड़ा पापी हूं।' संत ने उत्तर दिया,  'मैं भी बहुत बड़ा पापी हूं।' डाकू ने कहा,  'मैं चोर और लुटेरा हूं।' संत ने कहा,  'मैं भी चोर और लुटेरा हूं।' डाकू ने कहा,  'मैंने बहुत-से लोगों का कत्ल किया है, उनकी चीख़-पुकार मेरे कानों में बजती रहती है।' संत ने भी उत्तर दिया,  'मैं भी एक हत्यारा हूं, जिनको मैंने मारा है, उन लोगों की चीख़-पुकार हमेशा मेरे कानों में भी बजती रहती है।' फिर डाकू ने कहा,  'मैंने असंख्य अपराध किये है।' संत ने कहा,  'मैंने भी असंख्य अपराध किये है।' डाकू उठ खड़ा हुआ और टकटकी लगाकर संत की तरफ देखने लगा। उसकी आँखों में विचित्र भाव थे। लौटते समय वह उछलता-कूदता पहाड़ी से उतर रहा था। मैंने संत से पूछा, 'आपने झुठ-मुठ में खुद को अपराधी क्यों

सम्मान

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घर में घुस आए एक चोर को एक सेठ ने पकड़ा किंतु मुकदमें में फ़ैसला चोर के पक्ष में आया!  कैसे? पढ़िए एक दिलचस्प क़िस्सा। घटना जापान की है। एक चोर चोरी करने के उद्देश्य से एक सेठ के घर दाख़िल हुआ। मालिक को सोता पाकर चोर ने क़ीमती समान को सूटकेस में जमा करना शुरू कर दिया। यहां तक कि ख़ाली पाकर उसने किताब और कपड़ो तक को भी न छोड़ा। तभी सहसा सेठ की आंखे खुल गईं। दूसरे कमरे से हो रही खटपट से वह समझ गया कि दाल में कुछ काला है। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। टेलीफोन भी उसी कमरे में था, जिसमें चोर मौजूद था। कुछ न सुझा तो सेठ ने ग्रामोफ़ोन पर राष्ट्रगान का रिकॉर्ड लगा दिया। चोर ने राष्ट्रगान की धुन सुनी तो वह सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया। सेठ ने मौका पाकर चोर के हाथ-पैर बांध दिए और पुलिस ने आकर चोर को गिरफ़्तार कर लिया। गवाही के लिए सेठ को भी बुलाया गया। सेठ ने चोर को चतुराई से पकड़ने की कहानी सुनाई। चोर के राष्ट्रप्रेम को देखकर वहां मौजूद जनसमूह भी दंग रह गया। अदालत ने फ़ैसला सुनाया, 'इतना बड़ा राष्ट्रभक्त मजबूरी में ही चोरी कर सकता है। असल वजह जाने बिना सजा देना भी गुनाह है। लिह

चित्रकारी.....

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सफल लोगों का काम आसान दिखता है, लेकिन उसके पीछे कठिन संघर्ष होता है। सीख--कई बार किसी सफल व्यक्ति को देखकर लगता है कि सफलता पाना तो बहुत आसान है, लेकिन लोग उस सफलता को पाने के लिए उसके संघर्ष को नहीं देख पाते हैं। इसे चित्रकार और युवती की कहानी से समझे-- एक बहुत बड़े चित्रकार थे। उनके बनाये चित्र बहुत ही महंगे होते थे। एक बार वह कहीं जा रहे थे तो मार्ग में रात होने पर वह किसी गांव में रुक गए। उस गांव में रहने वाली एक लड़की ने उन्हें पहचान लिया। वह चित्रकार के पास गई और उन्हें प्रणाम किया और बताया कि वह उनके चित्रों की बहुत बड़ी प्रशंसक है। उसने चित्रकार से आग्रह किया कि वह उसके लिए एक चित्र बनाएं। उस चित्रकार ने अपने थैले से एक कागज निकाला और कुछ ही समय में एक चित्र बनाकर उस लड़की को दे दिया। उस लड़की ने जब इतनी जल्दी बना हुआ चित्र देखा तो उसे बहुत निराशा हुई। उसने सोचा कि चित्रकार ने उसे टालने के लिए जल्दबाजी में यह चित्र बनाया है। उसके हावभाव को चित्रकार समझ गए और उन्होंने कहा कि इस चित्र का मूल्य एक हजार स्वर्ण मुद्राएं हैं। युवती को विश्वास नहीं हुआ और वह अगले ही दिन सुबह ही श
इस तपोवन का भी अपना सौंदर्य है। बसंत के आगमन पर उल्लास ग्रीष्म में जलता सूरज तन जलाता है। बसंत को तो सभी प्यार करते है। बैशाख, जेठ में अग्निवर्षा सहते है। ऋतुचक्र की सम्पूर्णता बसंत, वर्षा, शरद ही नहीं शिशिर, हेमंत, और ग्रीष्म भी जरूरी है।

समझदारी पागल माँ की

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समझदारी एक पागल स्त्री को एक समझदार पुरुष माँ बना चला गया। रोते बच्चे को गोद में लिए दूध के लिए भीख मांग रही थी। तभी एक दूसरी स्त्री ने 20रु दुकानवाले को देकर कहा इसे बच्चे के लिए दूध दे दे। लेकिन वो पागल दुकानवाले से बोली अभी 10रु का ही दूध दे 10रु बाद में ले लूंगी दूध फट गया तो? माँ बनते ही पागल स्त्री भी समझदार हो गई दूसरी स्त्री निःशब्द उसे ताकती रह गई।

स्त्री तुम पुरुष न बनना...

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स्त्री तुम पुरुष न बन पाओगी अपने प्रिय को भूल दूजा न अपना पाओगी। तुम अंतर्द्वद्व में फंसी इतिहास न बदल पाओगी। भोग से तप तक की तुम्हारी यात्रा तुम्हारे जीवन का दुर्गम रास्ता तुम्हें कैसे तय करना है, ये भी तुम्हारा सबसे करीबी पुरुष तय करता है। तुम पलाश सी दहक अमलतास सी पीली पड़ गई हो। तुम कुसुम सी थी, नीम की निबौली सी कैसे हो गई। तुम आंखों का अंजन थी, जोड़-घटाव में कैसे फंस गई। तुम राधा सी थी, मीरा सी थी, सीता बन मौन क्यों हो गई। पुरुष तुम्हें सिर्फ भोगता है और तुम दर्पण में फंस झांसी की रानी को कैसे भूल गई। मिथ्या आरोपों को तुम गले क्यों लगाती हो। अपने प्रणय में जहर क्यों पीती हो। अपनी खीज को दबाती क्यों हो। तुम्हें न कोई समझ पाया था न समझ पायेगा। तुम सुख-दुख, आंसू-हँसी, संघर्ष-विश्राम, संयोग-वियोग, जीवन-मरण, यश-अपयश, से भरी हुई हो। स्त्री तुम समय की चाल न समझ पाओगी। ऋतुचक्र में फंस बस पुरुष को मनाती रहोगी। वो पुरुष जो तुम्हें सिर्फ भोग-विलास की वस्तु समझता है। स्त्री तुम पुरुष से लड़ो मत पर अपने अधिकार भी तो मत छोड़ो। तुम पानी हो तो भाप