की जाणां मैं कौन? की जाणां तू कौन? सत्य क्या?, असत्य क्या? कुछ न समझ आये। सितारों के संकेत क्या? नसीब के खेल क्या? मन की दुविधा तन की व्याधि क़िस्मत पर समय की लिखावट कैक्ट्स जैसे चुभते सवाल रेत में दफ़्न मायूस उत्तर डूबती आँखे गले में घुटती सांसे ठंडी पड़ती अस्थियां जीवन का स्वांग रचते सामाजिक पहलू। विषैले समझौते कैसे हर पल डसते है। खुद के गुनाह ढूंढते खुद को दोष देते है। परम्परा में जीने के आदि सबके बीच सुलग घाट की सीढ़ियों पर निढाल होते है। डर के साए में नदी में उतर चैन से सोते है!!
प्रेम~💝 कसमें वादे प्यार वफ़ा सपने ताने उलाहने प्रतीक्षा शर्म हया संकोच डर प्यार का हर रूप हर चेहरा, बेमिसाल है। प्यार फूलों सा नाज़ुक हवा सा नटखट धरती जैसा धानी भी है। प्यार कलियों पर बैठा भवरों का गुंजन भी है। प्यार मौसमों की अंगड़ाई सरोवर में खिला नीलकमल सा भी है।
नियति का विधान विचित्र है। संसार का सबसे सुंदर फूल दुर्गम घाटी में खिलता है। कदम्ब का फल बहुत सुंदर होता है, पर मधुर नहीं। सांच की आंच पर हर इंसा पकता है। राई सी जरूरते तरसता मन, मोहताज़ खुशियां समय की आंधी में बिन शोर उड़ती रहती है। कतरे-कतरे में खुद को गलाता इंसा सब स्वीकार करता है। क़िस्मत को कुछ मंजूर नहीं ये सोच तसल्ली का घूंट पी लेता है। भीतर तक आहत बस मद्धम-मद्धम गीत गुनगुना लेता है। नँगे पैर धरती का स्पर्श करता, सूरज की आभा तले गुड़हल के फूल सा मुस्कुरा लेता है। अपनी झोपड़ी में खुद को टटोलता, बरसते नेह से अपनी छवि के चक्कर लगा सिमटकर सो जाता है। नियति का विधान विचित्र है। हर संभव में असंभव मिला, अँधेरे में उजियारा तलाशता इंसा.. निर्दोष जीवन, काल के ग्रास में अचरज भरा जीवन जी लेता है!!
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