कोशिश तो की मैंने

लिखना नहीं आता मुझे
फिर भी कोशिश तो की मैंने
विचरना नहीं आता मुझे
फिर भी रितुओ से बदलते विचारो मे उलझी मैं
प्यार करना नहीं आता मुझे
फिर भी प्यार कि ज्वाला में जली मैं
अपनेपन का दिखावा करना नहीं आता मुझे
फिर भी कुछ अपनों से ये भी सीखा मैने
किस्मत पर यकीन नहीं मुझे
फिर भी ग्रहो की चाल समझ हाथो में उभरी लकीरो में खुद को तलाशा मैंने
खोखले रिति रिवाज़ो में यक़ीन नहीं मुझे
फिर भी अपने बड़ो का मान रखा मैंने
झूठ बोलना नहीं आता मुझे
फिर भी झूठो की दुनियां में सच को परखा मैंने
छलना नहीं आता मुझे
फिर भी समझौते कि चादर में लिपटकर खुद को छला मैंने
और फिर थक कर तकिये के सहारे आँखे मूंदकर सपनो में तलाशा तुझे
मुझे वो अमावस का अँधेरा और उनींदा आसमान भी नज़र आया जहाँ एक अँधा फ़कीर खुद से बातें करता चल रहा था रात के अँधेरे में
मैंने उससे कहा बाबा सुबह का इंतज़ार तो कर लेते तो उसने कहा रात दिन का फ़र्क तो आँख वालो का फैलाया भरम है
मुझे रास्ता पार करने के लिए किसी सूरज की जरूरत नहीं की क्योंकि मेरे लिए दिन भी उतना ही स्याह है जितनी की रात इसलिए मैं अपना दिन अपनी रोशनी साथ लिए चलता हूँ
                     

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