एक बूंद शहद की

दिल के दरिया में बहकर           
दिमाग के तारो में उलझकर
गलती से मैने रिश्तों की धून्ध में उम्मीदों की तलाश की 
तो मुझे हर रिश्ता खुद में उलझा गैरों की महफ़िल से एक बूंद शहद की चुराता मिला !
जो मैंने कड़क कर पूछा ये शहद की बूंद क्यों चुराई तुमने
तो जबाब मिला खोखले रिश्तों के अकेलेपन में दम घुटता है !अब हमारा 
क्या हुआ जो एक बूंद शहद की चुरा ली
क्या तुम नहीं चुराती सबकी आँखों से नीर , होठों से मुस्कुराते शब्दों की तारीफ़े
ये सुन मैं अवाक् थी
ये सब तुमने कैसे जान लिया मुझे न जान कर भी ! 


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