माँ तुम सा कोई नहीं

 
   तुम देती थी हिदायते हज़ार
 और मैं अनसुना कर जाती थी
तुम छीपा जाती थी बाबा से मेरा लेट आना
और मुझे बचा लेती थी डाँट पड़ने से
मैंने न जाने कितनी बार तुम्हारा दिल दुखया
फिर भी तुम मेरा साथ देती थी
खुद कितना भी डाँट लो पर किसी और को कुछ कहने न देती थी
आज तुम्हारी बातें याद करके मन भर आया
जानती हो क्यों क्योंकि मैं भी आज वही सब करती हूँ
जो तुम करती थी मेरे लिये
सचमुच माँ 
पर आज मैं तुम्हारी डाँट खाने के लिये बेचैन हुई जा रही हूँ
तुम्हारे दर्द को जी रही हूँ माँ

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