आँखों के कोरो में आयी नमी की बूंद
और उस बूंदों में समाते हमारे उलझे रिश्तो की डोर
खुद में अपनापन समेटे खोखले रिश्ते !
रिश्तो की गरिमा जो मैं ढूंढने चली तो पाया
कच्चे धागों में लिपटे कुछ नाजुक रिश्ते
क्या ये रिश्ते इतने नाजुक होते है ?
काँच की चूड़ी के जैसे रेत में उड़ गई बारिश की बूंदों के जैसे
हम क्यों नहीं कर पाते है इसमे दोस्ती की मिलावट
क्योंकि जहाँ दोस्ती होती है !
वहाँ सुखी घास में भी नमी भरे बदलो की उम्मीद जाग ही जाती है !
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