कहानी बोकाजू और चुआंग-जू की
मुस्कुराएँगे जरूर आप सब मैं जानती हूँ
बस एक यही कमी है आपकी और मेरी भी हम खुद के लिये जीना भूलते जा रहे है मुस्कुराना भूलते जा रहे है जीवन की दौड़ में तो हम आगे निकल गए लेकिन हमारी वो मुस्कुराहट कहीँ दब गयी है आइये उसे तलाश लाते है !
सदियों पुराना एक किस्सा हैं बोकाजू का , जो यूं तो अच्छे ख़ासे अक्लमंद थे , लेकिन उन्हें सुबह उठते ही ज़ोर से अपना नाम लेने की और फिर उतनी ही ज़ोर से 'यस सर' कहने की बड़ी अजीब आदत थी ! एक बार किसी ने पूछा ' ये क्या हरकत हुई भला , ख़ुद का नाम पुकारना और खुद ही हुंकारा भरना ?' बोकाजू मुस्कुराये , मैं कहीँ यह भूल न जाऊ कि मैं कौन हूँ , इसलिए मुझे खुद को रोज़ यह याद दिलाना पड़ता है कि मैं कौन हूँ !'
एक कहानी और
एक रात चुआंग-जू किसी गहरी गुत्थी को खोलने में उलझे थे अचानक उन्होंने ग़ौर किया कि ज्यादातर शागिर्द ऊंघ रहे है ! वे मन ही मन हँसे और एक कहानी शुरू की --- किसी यात्रा के दौरान पैसों की तंगी की वजह से एक आदमी ने अपना गधा हमराही को बेच दिया , लेकिन अपनी आदत के मुताबिक गधे की ओट मे सोना नहीं छोड़ा ! गधे के नए मालिक को ये बर्दाश्त नहीं हुआ ! वो चीखा , ' तुम मेरे गधे की ओट में क्यूँ सो रहे हो ?' पुराने मालिक ने बड़े शांत लहज़े मे उत्तर दिया,
'भाई मेरे मैंने गधा बेचा है उसकी छाया नहीं ' इतना सुनना था कि...... ' कहते कहते चुआंग-जू रुक गए ! एक एक करके न केवल उनके सारे शिष्य जाग चुके थे और , बल्कि आगे क्या हुआ ये जानने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे ! चुआंग-जू बोले , ' माने तुम्हे मेरी बातों से ज्यादा गधे मे दिलचस्पी है !'
और करवट बदलकर सो गए !
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