पहचान तेरी मेरी
जिनको मेरी क़दर नहीं
मैंने खुद के साथ खुद का परिचय कराया
खुद के साथ खुद का वक़्त बताया बड़ा अच्छा लगा
मैंने तन्हाई में ख़ामोशी के साथ बैठकर
खुद को खुद की ग़ज़ल सुनाई बड़ा अच्छा लगा
मैंने दुनियां की इस भीड़ में चलने बजाय
खुद को खुद के साथ घुमाया बड़ा अच्छा लगा
मैं खुद को सबसे किसी न किसी बहाने मिलाती रही
रिश्ते और भी गहरे बनते गये बेवजह मिलने से बड़ा अच्छा लगा
मैं पुरे की ख्वाहिश मे बहुत कुछ खोती जा रही थी
अब जाकर मैंने जाना आधा चाँद भी बेहद खुबसूरत होता है
भरी जेब से तो दुनियां भी भीड़ में पहचान लेती है
और जेब खली हो तो अपने भी मुकर जाते है मैने ये भी जान लिया है
अब मैंने जाना मैंने जो कुछ भी पाया जो कुछ भी खोया है
सब यही रहने वाला है
क्योंकि मेरा भी आखरी ठीकाना तो मिट्टी का घर ही है
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