वेलेंटाइन डे

मेरी शादी में मेरी मर्जी शामिल नहीं थी
मैने तो बस एक समझौता किया था। सबकी ख़ुशी के लिए तो मुझे रोना कैसे आता अपनी विदाई में। सबकी चाहत थी मुझे रोता देखने की विदाई की रस्म अदायगी में पर मैं खामोश थी।
ससुराल पहुँचकर सारे रीति- रिवाज़ पुरे करती गई बिना किसी उम्मीद के। सबने खूब तारीफे की , मेरी सुंदरता का खूब बखान भी किया। और बड़ी सफाई से उलहाना भी दिया मेरे पिता द्वारा दहेज़ न दिये जाने का।
समय यू ही बीतता गया और मेरी शादी के साल भी यू ही बढ़ते गये
मेरी ख़ामोशी कभी-कभी ज्वाला बनकर फूटती और मेरे लबो से लावा बहता।
सब मुझसे दूर होते जाते और मैं अकेली रेगिस्तान में भटकते रेत सी
विचारो में जमीन आसमान का अंतर मुझे अब कुछ ज्यादा ही खलता। पर अपना धर्म समझ मैं पति से माफ़ी मांगती और बाते करती। और फिर से उनका न बंद होने वाला लेक्चर सुनती मन ही मन रोती और हाँ मे सिर हिलाती जाती मुझे लगता चलो अब सब ठीक है।
ऐसे में एक पूरा सप्ताह वेलेंटाइन डे कि रस्मे निभाता एक जोड़ा मुझे अपने पड़ोस में मिला। मुझे तो उनसे पता चला कि प्यार कैसे करते है।
पहले फूल , फिर चॉकलेट , फिर टेडीबेयर , फिर परपोज़ , फिर किस्स और न जाने क्या क्या हर चीज बड़े सलीके से सजा सावरकर जैसे वसंत के आगमन पर होली की तैयारियां पर मुझे ये सब कैसे पता चलता। मेरे ज़माने में ये सब चीजें इतनी प्रचलित नहीं थी।
अब पता चला तो मेरी भी ख्वाइश हुई कि मैं भी वेलेंटाइन डे मनाऊ पर कैसे.........
इसी विचार में डूबी मै कोई उपहार अपने पति को देने का विचार करने लगी पर दूसरे ही पल मैंने सोचा वो कोन सा मेरे लिए कुछ लाने वाले है। चलो छोड़ो मुझे भी ये फालतू के चोंचले नहीं करने है।
लेकिन इन सब में मैं अपनी शादी की सालगिरह ही भूल गई जो कि 14 फरवरी को ही आती है। ये मुझे शाम को अचानक याद आया तो मुझे बहुत अफ़सोस हुआ कि मै ये कैसे भूल गयी। फिर अपने मन से ये सारे फालतू के विचार हटा कर मैंने अपने पति की पसंद का खाना बनाया। और मन ही मन ये सोचती रही कि काश मैं भी वेलेंटाइन डे मना पाती।
रात को जब पति घर आये तो मैं अनमनी सी ये सोच रही थी कि आज का दिन भी भूल गये फिर से। ये कैसा आदमी है। इसे तो किसी चीज से कोई मतलब ही नहीं है।
फिर मैंने पति और बच्चों को खाना खिलाया और खुद ने बिना मन के खाना खाया। और कमरे में गयी तो मुझे एक छोटा सा पैकेट बिस्तर पर मिला। जिस पर लिखा था I love you मैंने उसे खोला तो मुझे उसके अंदर एक कंगन का जोड़ा मिला मै बहुत खुश हुई पीछे से आवाज़ आई कि पहनोगी नहीं क्या मैं बस हाँ में सिर हिला पाई कुछ बोल नहीं पाई फिर मेरे पति ने कहा।
मै आज का दिन कैसे भूल सकता हूँ। तुमने ये कैसे सोच लिया कि मैं आज का दिन भूल जाऊँगा। मै अपना प्यार इज़हार नहीं करता क्योंकि प्यार शब्दो का मोहताज़ थोड़ी होता है। तुम मेरी वो जरुरत हो जिसके बिना मैं जिन्दा नहीं रह सकता ये कंगन बहुत महंगे नहीं है। पर इसमें मेरे एहसास छुपे है। मै आजकल बस से ऑफिस जाता हूँ कभी कभी तो पैदल भी मेरा ऑफिस इतना दूर भी नहीं है। इससे मै दो काम कर पाया एक कंगन के लिए थोड़े पैसे बच गये और मै फिट भी हो गया अब मुझे रोज़ तुम्हारी नसीहत भी नहीं सुननी पड़ेगी और घर खर्च में कटौती भी नहीं करनी पड़ेगी कंगन लेने के लिये तुम्हे पसंद है न कंगन।
मैंने हाँ में सिर हिलाया और उनके गले लगकर खूब रोई और कहा इसकी कोई जरुरत नहीं थी। मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ इसलिए आपके प्यार के इज़हार का इंतज़ार करती हूँ आज भी क्योंकि शब्द  हमारे प्यार के एहसास को तरोताज़ा रखते है हर उम्र में।
मुझे आज इतने सालों बाद खुद पर गर्व हुआ अपने पति पर गर्व हुआ। मुझे आज सही मायनों में सच्चे प्यार का मतलब समझ आया
आज मैने सचमुच वेलेंटाइन डे मनाया !



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