चाँद की शीतलता ओढ़े नर्म सर्दीयों में
तारों की छांव में चमकते जुगनुओं की रोशनी में
माँ ने मुझे गर्म शाल में लिपटी कुछ लोरियां सुनाई थी
उन लोरियों की गर्माहट में आज मैंने भी अपने नन्हें को लपेट कर सुकून से सुलाया है। और माँ की याद को ज्यो का त्यों अपने सीने में छिपाया है।


तेरे आने से मुझे मेरे होने का सुकून मिला था
क्योंकि तुझमें मेरा ही अक्स मिला था
तेरी वो नन्ही हथेली का स्पर्श मुझे आज भी याद है।
क्योंकि उन नन्ही हथेली को थाम कर ही मैंने फिर से जीना सिखा था।


ये तुम्हारी जिंदगी है। तुम जैसे चाहो इसे जी सकते हो।
कभी आंधियो में रेत से उड़ कर , तो कभी बागों में गुलाब बनकर
पर रेत सड़को पर उड़ती है। और गुलाब सबके दिलों में खुशबू बनकर महकता है।


आँखों की कैद से आँसुओ को रिहाई देने मैं बारिश में भीगी
होठों की कैद से सिसकियों को रिहाई देने मैं सुरों में घुली
बादलों संग उड़कर मै आसमान में पहुँची
और काली घटाये बन खूब बरसी ।

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