कभी अपनी मर्जी से कभी गैरों की मर्जी से
जिंदगी का इम्तिहान दिया हमने
पर हमें क्या पता था सिर्फ इम्तिहान देने से किस्मत नहीं बदलती है।
हाथों में भी किस्मत की लकीर होनी जरूरी होती है।


बेगानों की महफ़िल में तमाशबिनो का मेला सजा है।
गलती से भी उस और न जाना तुम
नहीं तो सारी उम्र पछताओगे क्योंकि ये बेगाने तुम्हे अपना बना कर ठग लेंगे
और तुम सारी उम्र सोचते रह जाओगे की तुम्हारी गलती क्या थी। क्योंकि इनका तो काम ही है।
शक्ल देखकर तिलक करने का


दुनिया में अपनी पहचान बनाने मैं भी गई
पर बहुत जल्दी समझ गयी
यहाँ हुनर से ज्यादा सूरत पहचानी जाती है।
इंसानियत से ज्यादा खूबसूरती पहचानी जाती है।


तुम अब किसी से प्यार न करना क्योंकि प्यार एक ऐसा धोखा है। जिसमे हम खुद को खुद के द्वारा छलते है।
ये प्यार भी सिर्फ एक आदत है। जो बदलती रितुओ सा बदलता है।
और कुछ नहीं


तुम सारी दुनियां से लड़कर बेकार खुद को तकलीफ देते हो
ये दुनियां तुम जैसी बिलकुल नहीं है।
यहाँ तो वो जीतता है। जिसके पास दौलत की खनक ज्यादा है
जिसके पास पहचान की खनक ज्यादा है।
यहाँ इंसान गिरगिट सा रंग बदलता है।
यहाँ इंसान बहरूपिये सा पहचान बदलता है।







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

प्यार के रूप अनेक

नियति का विधान...!!!