कहते है कि ये दर्द भी एक नशा है।
अगर किसी को इसकी आदत हो जाये और ये न मिले तो बदन में सिरहन सी उठती है , होठ बुदबुदाते है ।
और दिल सोचने पर मजबूर हो जाता है। कि ये मुझसे दूर कैसे हो गई इसका और मेरा तो चोली दामन का साथ था
और इसी सोच से मजबूर होकर वो नये दर्द की तलाश में जुट जाता है।


तेरे हाथों को छू कर जो उड़ गई वो बारिश कि बूंद
तेरे होठों को छू कर जो उड़ गई वो हँसी
तेरे माथे को छू कर जो उड़ गई वो मुस्कान
ले आ फिर से अपने सपनों में
क्योंकि क्या पता कल क्या हो
तू आज ही जी ले अपना हर सपना।


हर दर्द एक आंसू छलकाती है
हर गम में एक उदासी मेहमान सी बनकर आती है।
और अक्सर दिल की बातें होठों तक आकर खामोश हो जाती है।


ये कैसा सफ़र है। यहाँ न मंजिले है। न राही
बस फैली है। बेख़ौफ़ सर्पीली राहे
और उनमें रेगिस्थान में रेत सा भटकता तू।





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