झरने से बहते शब्द

शब्दों के झरने में बहते है ! कुछ शब्द नदियों में बहते मोती से
तो कुछ गंदे नालों में बहते कीड़े से

मोती मन को सुकून देते है ! तो कीड़े मन को नोचते है ! खोखला कर देते है!
पति पत्नी का रिश्ता भी तो ऐसा ही होता है !
पति मन को छील जाता है ! और पत्नी रोती हुई अपनी किस्मत को कोशती रह जाती है ! और पति को कुछ फर्क भी नहीं पड़ता है ! सचमुच
हमारे शब्द हमें एक पहचान देते है ये तो हम सब जानते है !
पर फिर भी हम गलत शब्दों का इस्तेमाल तो करते ही है !
कुछ तो आज की भाषा ही बन चुके है फिर चाहे सुनने में अच्छे लगे या बुरे हमें इसकी परवाह ही कहाँ है ! हमें तो बस बोलना है !
कितना अच्छा होता अगर हम कर्णपिर्य होते ! रिश्तो की कड़वाहट खुदबखुद हमसे दूर चली जाती !
             मैंने सुनी तुम्हारी वाणी तो लगा तुम बेहद खूबसूरत 
             हो ! मन के कोने में  मैंने तुम्हारी एक अलग छवी 
             गढ़ ली और तुम्हारा सानिध्य पाने को मेरा मन 
            बेक़रार होने लगा !
            जब पास गया तो तुम बेहद साधारण थी और होंठ 
            काले ! पर जब तुम्हारे होंठ खुले तो लगा यहाँ सा 
            अमृत मुझे शायद कहीँ और नहीं मिलता और तुम 
            मुझे मेरी कल्पनाओ से भी ज्यादा खूबसूरत लगने
             लगी ! रजनीगंधा के फूलों सी लगने लगी !

           

         

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