जिन्दगी तेरी मेरी
ये नाउम्मीदी की किरणें
ये बरखा की सीलने
तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है।
ये बंद कमरों की बातें
ये आसमां से टपकती रातें
तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है।
ये रिश्तों की उधड़ी सिलाई
किस्तों की कमाई
तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है।
ये अपनों के ताने
गैरों के सिरहाने
तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है।
ये जिन्दगी की करवटे
उम्र की सिलवटे
तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है।
ये बुनियादी जरूरतें
बैंको की नसीहतें
तुझे और मुझे हर रोज रुलाते है।
मौत की ख्वाइश में जिन्दगी को तू लाश न कर
मौत तो एक सच्चाई है। तू चाहे या न चाहे आयेगी
जरूर
इसलिए जिन्दगी की दौड़ में तू आज की खुशियों
को दफ़न न कर !
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने
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