मन का क्या है !! साहब !! उधड़े सपनो का महल है।
रोज़ ख्वाबो की गलियों में भटकता है।
और थक कर बिस्तर पर चादर सा सिमटकर सो जाता है।
और फिर एक खण्डहर में बेसुध घुमता है!!!

ये शरबतों से रंग बदलते रिश्ते ??
रोज़ कड़वाहट की चासनी में पकते है।
और गैरों से अपनापन पा मोम से पिघलकर
अपनी ऊँगली जला बैठते है !! 😢😢!!

शक्ख का कोई मज़हब नहीं होता , बस अपनों की आँखों में
बेरंग आंसू भरते है।
कड़वाहट की आग में खुद जलते है , दुसरो को जलाते है।
और ऊपर वाले से हर पल शिकायत करते है।
ये तूने मेरे साथ अच्छा नहीं किया???!!!

अपने ग़मो में , मैं अक्सर तेरी तलाश करता हूँ ,
तुझसे ढेरों सवाल करता हूँ ,
और खुद जवाब बनता हूँ ,
तुझे कैसे बताऊ मैं , ये सब कैसे करता हूँ ,
बस तेरी तस्वीर पर सर रख कर सो जाता हूँ.......!!!




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