ये कैसा मुल्क है। यहाँ हर तरफ शुल्क है।
बाप बेटे की लड़ाई में माँ घुली जा रही है,
पराई बेटी को याद कर सब्जी को खारा किये जा रही है।आँसुओ की लड़ी से।
उस घर की बहन रो-रो कर कोहराम मचा रही है। क्योंकि पाक रिश्ते को दाग़दार किया उसके अपने ही भाई ने
अब रोटी खाने का मन नहीं करता क्योंकि खुद अनाज़ उगाने वाला किसान दाने -दाने को मोहताज है, आत्महत्या करने को मजबूर हो रहा है।
आज पाड़ोसी के घर जनाज़ा निकला है। खाप पंचायत पर अमल हुआ है।बेचारी माँ भी नहीं रोने के लिए मजबूर है। बाप चुपचाप कोने से विदाई दे रहा है। पर भाई का सीना चौड़ा है।
अबकी बार उसकी जीत पक्की है। अब वो भी सरपंच बनेगा अपनी जाती की रक्षा करेगा ।
बाप के मरने पर आज वो बेटा भी मन ही मन बहुत खुश है।
अब वो बेरोजगार नहीं रहेगा। बाप की जगह उसकी भी सरकारी नोकरी पक्की है।
चलो एक तो सुकून है। उस घर की बेटी डॉक्टर बन गई अब सारे घर का इलाज़ फ्री में होगा। बेटा अगर डॉक्टर बन जाता तो विदेश में जा बस्ता और कोई गोरी ब्याह लाता। और हमें
विरधा आश्रम की राह दिखा देता।
लेकिन बेटी तो अब भी ब्याह के खिलाफ है। हमारी सेवा करना चाहती है, अनाथालय से बच्चा गोद लेना चाहती है !
ऐसा नहीं है की मैंने बेटी को नहीं समझाया की ब्याह कर ले तेरा घर बस जायेगा। हम तो आज है कल नहीं। तो वो बोली
माँ हम 21वीं सदी में जरूर रहते है। पर औरत आज भी दोयम दर्जे की नागरिक ही मानी जाती है। कितने दशकों से संसद में महिलाओं के तैतीस प्रतिशत प्रतिनिधित्व संबंधी बिल पास नहीं किया जा सका है। यहाँ तक कि तवायफ भी अपना हक नहीं मांगती।  लज्जा नामक भाव का अविष्कार भी महिलाओं को दबाने के लिए किया गया है। ये समाज अब भी पुरुष प्रधान समाज है। और अब मैं अपने अधिकारों से वंचित होना नहीं चाहती।
इसलिए अब मैं शादी ही नहीं करना चाहती हूँ !!!


                       ये हालातो दफ़्तर है!!साहब!!
                       हम सब यहाँ मजबूर है।
                       जहाँ से ज्यादा कमाई होती है।
                       हम सब उसी के चपरासी है !!!




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