मन की कलम से
ये मन की तड़प है ,
या मन का सुकून ,
जो हर किसी पर शक़ होता है ।
इस धरा पे एक सुकून मुझे भी दे दो माँ ,
इस अम्बर पे एक तारा मेरा भी रख दो माँ ,
अब मन में एक प्यास सी जागी है ,
मेरे हाथों की कलम उसे बुझाती है ।
अब मेरा मन मुझे बहुत रुलाता है ,
बस कोरे पन्नों पर बिखर सुकून पाता है ।
अब मुझमें किसी चीज का बसेरा नही है ।
बस रातों की तन्हाई में खुद से बातें कर ,
अम्बर पर तारों सा पसर कर सो जाती हूँ !!!
अक्सर उनींदी सुबह के सपनें सच्चे से लगते है ।
मलती आँखों को हर ख्वाब पुरे से लगते है ।
पर ये बेरहम जिन्दगी ढलती शाम में आकर
मायूस सी हो जाती है ।
और चादर से लिपट कर फिर एक नया ख्वाब
बुनती है ।
और हमें गुमराह करती है .........!!!!
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं