कुछ सच्ची कुछ झूठी जिन्दगी

जिन्दगी हर मोड़ पर एक नया राज़ लाती है ।
दीपक की लौ कभी मंदी कभी तेज़ हो जाती है ।
मन अश्कों की पेटी है , चाबी जाने कहाँ गुम
हो गई है ।
अब बदलो की गर्जन भी डरा नहीं पाती ,
हिमशिला पिघला नहीं पाती ।
माना आग का दरिया बारिश बुझा देगी ,
पर बारिश के जले को बारिश कैसे बुझाएगी ।
तुम्हारी नजरें भी मुझे भटकती सी लग रही थी ।
अच्छा हुआ जो मैंने सूरत छीपा रखी थी ।
कान्हा को राधे बहुत प्रिय थी ।
पर राधा तो उनके नसीब में नहीं थी ।
ये तो एक भटकन है , सारा दोष नसीब का है ।
हाथो की लकीरों को देख हम खुश होते रहे ।
पर नसीब की बुआई तो पत्थरों से हुई थी ।
जिस्म की दहलीज़ पर भी संगमरमरी ,
पत्थर बिछे थे ।
फिर नर्म मख़मली बिस्तर पर हमें नींद का
सुकून , कैसे मिलता ।
माथे पर बदनसीबी का तिलक सजा है ,
फिर होंठों पर वीणा के तार कैसे लहरायेंगे ।
जिन्दगी पैबंद लगी रेशमी साड़ी में लिपटी है ।
अब पिघलते मोम से भी डरती है ।
जिन्दगी हर मोड़ पर एक नया राज़ लाती है।
दीपक की लौ कभी मंदी कभी तेज़ हो जाती है ।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

पीड़ा...........!!!

एक हार से मन का सारा डर निकल जाता है.....!!