कब आओगे कान्हा


            कहाँ हो कान्हा ,
मन बहुत व्याकुल है ।
सुना है । तुम्हारे चाहने वाले बहोत है ।
अब मेरे लिए तुम्हारे पास वक़्त नही ,
पर कान्हा मैं तो सिर्फ तुम्हारी थी ,
हूँ , और हमेशा रहूँगी ,
पता है कान्हा ,
आज मेरा मन तुम में बहक रहा है ,
धरा सा फ़ैल रहा है ,
आसमां सा भटक रहा है ,
किरणों सा उड़ रहा है ,
पवन सा शोर मचा रहा है , ।
जानती हूँ , तुम्हे सारी दुनिया चलानी है ।
पर मेरा क्या कान्हा , दो पल मेरे लिए भी
निकाल लिया करो ।
आज माँ यशोदा भी तुम्हारी शिकायत कर
रही थी ।
तुमने बहोत दिनों से माखन भी नहीं खाया है ।
वो यु  ही पड़ा - पड़ा तुम्हारे इंतज़ार में पिघल रहा है ।
सुनो  ,  कान्हा हम सबसे यु पीछा न छुड़ाओ ,
आ जाओ इस धरती पर फिर से ,
सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे है ।
                 
                   कान्हा को फाइलों की रट लगी है ,
                   यहाँ मेरी नींद उड़ी है ।
                   कान्हा गोपियों संग उड़ रहा है ,
                   यहाँ मैं तारों संग भटक रही हूँ ।
                    जाने कब आयेगा कान्हा  ,
                    बारिशों सा इंद्रधनुषी सौगात लेकर ।
                    जाने कब  ???
                 

                 




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