वक़्त का वक्तव्य


          दफ़न ख्वाइशों का जिंदा मिशाल हूँ ,
हर गली , हर मोहल्ला , हर शहर , 
मेरा एहसानमंद है ।
मैं क़ातिल नहीं , बस समझौता हूँ ,
मैं सबकी खुशियों का राज़दार हूँ ,
पर क्या करूँ , जिन्दगी सिर्फ खुशियों
का ताना , बाना तो नहीं ।
मैं बिन बुलाया मेहमान सा हूँ ,
कोई चाहे न चाहे सबकी जिंदगियों को
बहा ले जाता हूँ ,
सब मेरी परवाह करते है । पर चलते ,
ग्रह- नक्षत्रों के हिसाब से है ।
मैं क्या करूँ लू के थपेड़े दे उन्हें भी
समझाता हूँ ,
फिर सबका गुनाहगार भी , कहलाता हूँ ।
पतझड़ सा उड़ , इस सदी से , उस सदी में ,
यू ही भटक रहा हूँ ।
मैं भविष्य की टहनी हूँ , तो गड़े मुर्दो का
वक्त भी , मेरा खुद का कोई रंग , कोई आकार ,
कोई रूप नहीं ।
बस सबको वक़्त के अनुरूप ढाल देता हूँ ।
मैं वक़्त हूँ , मैं हर पल , हर लम्हा चलता हूँ ,
इंतज़ार किसी का नहीं करता ।
कभी भी , कभी भी , !!!



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