मैं और मेरा चाँद

            मेरी शामें सिमटी तुझमें ,
रातें बेख़ौफ़ तुझसे लिपट रही है ।
सूरज की पहली किरण भी तू ,
दोपहर की जागती ख़्वाबो का एहसास भी तू ,
तुझे कैसे बताऊ सारे अनगढ़ सवाल तू ,
सारे अनसुलझे सवाल भी तू ,
और मेरी मुस्कान की वजह भी तू ,
मेरे चेहरे पर चढ़ा ये सिन्दूरी रंग भी तेरा ,
मेरे होंठो से किलकारियां फूट रही है ।
और अब मुझे डर लग रहा है ।
कहीँ कोई देख न ले , कहीँ मैं बीना वजह
बदनाम न हो जाऊं ,
तेरा क्या है । तू तो छिप जायेगा
रात में जुगनू सा ,
मैं रात में सितारों की महफ़िल में , चाँद की
मंधिम रौशनी में पकड़ी जाऊँगी ।
फिर क्या कहूंगी सबसे ,
जब लोग पूछेगें ये सिन्दूरी रंग कैसे चढ़ा ,
किलकारियां क्यों फूटी ,
तो मैं एक बहाना फिर गढ़ दूंगी , की ,
मुझे ये चाँद जला रहा था , चिढ़ा रहा था ,
इसलिए मैं भी उसे जला रही थी ,
चिढ़ा रही थी ।
पवन बहका रहा था , इसलिए मैं भी उसे
बहका रही थी ।
और अब रात में उसे फिर जलाऊंगी ,
फिर चिढाऊँगी ,
क्योंकि उसने चाँद से मेरे बारे में बातें कर
मुझे परेशान किया है ।
अरे , तुम सब मुझे गलत समझ रहे हो ,
मैं तो इस चाँद से बदला ले रही हूँ ,
और कुछ नहीं , और कुछ नहीं !!!😊😊😊!!!






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