मैं दुनियांवी दुकानदारी समझती नहीं, हिसाब की थोड़ी कच्ची हूँ।
इसलिए कुछ गैरों ने अपना समझ ठग लिया,और अपनों ने छल लिया।
मेरे जिस्म में अब मेरी सांसे घुटती है।, दर्दो से मेरा गहरा नाता है।
अब मैं आँसुओ की बेहद शौकीन हो गई हूँ, हर बात पे हर एहसास पे जाम सा पीती हूँ।
ज़ख्मो को सिते- सिते हाथों में छाले उभरे है। और जिस्म बेखबर सा यादों में सुकून तलाश रहा है।
हर तरफ खुशियों की क्लास लगी है। जो जीने के हुनर सिखा रही है।
अब मैं हैरान परेशान नहीं हूँ, बस खुद को भीड़ से अलग करना चाहती हूँ।
आसमां में चैन से सोना चाहती हूँ, तारों के बीच रहना चाहती हूँ।

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