विचारो का आहता

   मेरी दुनियां सिमटी थी , मुझमे......
और मैं सिमटी थी ख़्वाबो में.........
मेरे ख़्वाबो में मैं थी , मेरी हँसी थी.....मेरा उड़ता
आंचल था , लहराती काली घटाये थी , मेरे चेहरे
को स्पर्श करती मेघों की बारीक़ बुँदे थी......
वो हर चीज थी जो मेरे मुस्काने की वजह थी ,
पर ख़्वाब तो ख़्वाब होता है ,
एक दिन टूट जाता है !!!

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हमने तुझे इस कदर चाहा ये हमारा कसूर नहीं है.......
हमारी सांसो ने हमें बहकाया है.......
दिमाग को अपनी तरंगों में उलझाया है.......
और दिल ने मजबूर होकर.......
तुझे इस कदर चाहा है.....

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हर सिंगार के फूलों सी झड़ रही है.........
ये दोस्ती.........
यकीन के धुनों पर थिरक रही है........
ये दोस्ती.........
मिट्टी के कच्चे घड़ो सी महक रही है.......
ये दोस्ती........
अँधेरे में चमकते जुगनुओं सी है........
ये दोस्ती...........
केसरिया रंग में लिपटी केसर सी है.........
ये दोस्ती...........

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मेरी हँसी जो टकराई मेरे गालों के डिम्पल से........
तो मेरे कानों के झुमकों ने आँखों के काजल से.......
इसकी शिकायत कर दी...........
और काजल ने बिन्दिया से इसका राज़ जानने के
लिये कहा......
तो बिन्दिया ने माथे के झूमर के साथ मिलकर
मेरे चेहरे पर बिखरी लटों से पूछा.......
तो लटों ने कहा ये हँसी तो मेरी वजह से थी........

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ये सागर किनारे बिखरी शंख-सीपियां..........
रेत में बिखरी सोने की चमक सी चमकिलियाँ......
ये सागर कनारे खड़े चटटानों से टकराती लहरें........
शाम की तन्हाई में जो डूबा सूरज सागर में........
हम-तुम खड़े उसको देर तक निहारते रहे
थामे हाथों में हाथ..........
और एक दूसरे से करते रहे सवाल कि.........
ये महोब्बत क्या होती है........
इबादत क्या होती है..........

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