विचारों का आहता.......

 
मुक्कदर का फ़ैसला आया,
क़िस्मत के आगे ज़िद झुकी ,
हार की चाबी से जीत आजाद हुई ,
और चांदनी रात में जा मिली आसमां से ,
बन गई एक फ़रिश्ता........
सुहाने सफ़र का......सुहाने मिलन का........

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ख्वाइशों की लंबी कतार ,
उनमें साबसे आगे यार का दीदार ,
कोई गम नही , कोई दौलत नहीं ,
पर चाहत इतनी बेक़रार की ,
चाँद को भी ले डूबी आधी रात सागर में......

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कितनी विचित्र बात.......
प्रेम के ख़िलाफ़ हर आवाज़......
डरा , धमका , कर रीति-रिवाजो से समझौता
करवाती और किसी गैर के पल्ले बांध अपना
कहलवाती ,
फिर जीत की घोषणा कर इतराती.........
पर इस महोब्बत को कौन जीत पाया........
ये तो रूह से रूह तक का सफ़र है.....इसलिए
चांदनी रात में चाँद से कुछ पल बातें कर ,
समा गई चाँद में ही , और आज़ाद हो चाँद के
समीप ही तारा बन बैठी ,
निहार रही एक टक , अब भी अपने प्यार को ,
अपनी महोब्बत को...........

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हर रात एक एहसास जागा......
टुकड़ो में नींद बेहाल हुई.........
फिर आँखों में नींद सज़ा.......
खुद ज़े कुछ पल बातें कर मुस्काई.......
और ख़्वाबो में उसका हाथ थामे........
उसकी परछाई से लिपट कर सुकून से
सो गई........
फिर एक महल में प्यार भरे नग़मे गुनगुनाने लगी........

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मन मज़बूरियों का सौदागर.........
तन ख्वाइशों का पुजारी..........
सांसें सबसे जुदा जिस्म की ताकत......
और इश्क़ बेनाम रिश्तों का सबसे अहम रिश्ता.......
जहाँ कोई सौदा नहीं , कोई वादा नहीं ,
बस एक आंसू गिरा और दोनों मर गए बिन बोले.......
और अमर हो गए राधा से कान्हा से ,
रूहानी रिश्तों के यादगार से........
आसमानी चाँद तारों से.........

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क्यूँ वक़्त को पाबंद किया ,
क्यूँ इश्क़ को तड़पाया ,
अब सज़ा पा रहा उम्र के आशियां में
और यू ही भाग रहा खुद से , अपनी रूह से ,
और खुदा से मिन्नते कर रहा बार -बार.....
इस जन्म न सही अगले जन्म......
मोहे उनसे जरूर मिलवाना कान्हा......जरूर मिलवाना......
अब ये गलती नहीं दोहराऊंगा ,
वक़्त को पाबंद नहीं करूंगा.....नहीं करूँगा......

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