प्यार कान्हा का राधे से राधे तक........


प्यार शब्द आधा-अधूरा ,
पर इसकी गहराई की रेखा ,
पूरा मथुरा , वृंदावन , पूरा कान्हा..........
मुरली की तान में राधा-श्याम.........
पर प्रेम की रसधारा में बहे पूरा
गोपी-धाम..........
मन्नत के धागों जैसी बंधी राधा-श्याम की डोरी ,
उसे कोई न तोड़ पाया जग - रैन - बसेरी ,
राधा ने तो बस प्यार किया कान्हा से ,
और जग जीत गयी जग से ,
मीरा सी भक्ति , राधा सी शक्ति , पा न सका कोई.......
दोनों कान्हा की दुलारी थी , कान्हा के आँखों की
प्यारी थी.......
"कान्हा के मुँह में जग समाया.....
जग की क्या परवाह कान्हा को"
उसे तो बस राधे से प्यार हुआ,
मुरली से दुलार हुआ,
गोपियों से नवकार हुआ,
सुदामा से मित्रता हुई,
अर्जुन का सारथी बन सुना डाला भूत ,
वर्तमान , भविष्य , इस पृथ्वी का इस संसार का।
कान्हा सी गहराई..........
कान्हा सा प्यार.............
कान्हा सा संसार.......दूजा कोन था जो
रच पता ऐसे संसार........
पर कान्हा यहाँ तुम्हारी फिर जरूरत आन पड़ी है।
लौट आओ फिर एक बार इस पृथ्वी पर......
कर दो ये एक एहसान हम सब पर........
लौट आओ इस पृथ्वी पर..........इस पृथ्वी पर........!!!!






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