दस्तूर महोब्बत का........

ये बातों की खिलखिलाहट,
लाज़ शर्म की मुस्कुराहट,
तेरे आने से पहले कहाँ थी,
तेरी याद भर से चेहरे पर नूर आ जाता है,
जो तू न दिखे तो मन बैचेन हो जाता है,
फिर मन कही न लगता है,
बस यू ही तेरी तस्वीर से ये वक़्त, ये लम्हा गुजरता है,
और सबसे छिपकर ये मन रोता है,
अब पता चली ये बात बादल क्यों तड़प तड़प रोता है
और पुरवइया संग उड़ता है, हिलोर मरता है,
और जब बादल संग मिलती वक़्त की गुजारिश
सब तरफ रूहानी बरसात होती है ,
और हर खेत, खलिहान, मुंडेर, आँगन, गलियारा, सब
अमरित जल से नहाते है, पावन पवित्र होते है ,
और महोब्बत में पागल लोग छिपकर बौराते है,
मिलकर ख़्वाब संजोते है,
कभी लड़ते है, कभी एक दूसरे को मानते है,
ये इश्क आशां नहीं......
ये महोब्बत आशां नही.......
न ये आग,
न ये दरिया,
ये तो है एक सुनहरी झील.......
ऐसी झील जहाँ चाँद भी आधी रात डूबता है...
और सुनहरी झील सा सुन्दर हो तड़पता है.....
और फिर एक और रात का इंतज़ार करता है......
झील में डूबने का ,
झील से मिलने का,
क्या कहिये इस महोब्बत की ताबीर क्या है....
बस एक जादू है......
एक नशा है.......
एक तड़प है.......
एक उदासी है.....
और एक मिलन है,
एक सिरहन है,
एक खुशबू है,
एक भीगा भीगा सा एहसास भी है,
और जन्म-जन्म का विश्वास भी है,
चाहे दोनों मिले न मिले
पर एहसास विश्वास पूरी कायनात का ,
पुरे जहाँ का,
फिर चाहे मौत आये तो आये,
इनको डर कहाँ किसी बात का,
इनको तो बस मिलन एक-दूसरे का भाता है,
जैसे चाँद को रात भाता है और चांदनी को चाँद सुहाता है....!!!....!!!




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