मौत की उम्र में जीने की सज़ा.........

 
हमें तो बस तुझसे सरोकार था ,
तेरे वास्ते हर दरों-मदार कुबूल था ,
पर तुझे शायद सिर्फ जिस्म से प्यार था ,
मेरी रूह से कोई वास्ता न था ,
तू भी औरों सा ही निकला ,
ज़रा सी दिल की बात , दिल का डर तुझे बताया ,
और तू मुझे भरी महफ़िल में अकेला छोड़ आया ,
ज़रा न सोचा ये ग़ैरों की महफ़िल है ,मेरा अंजाम क्या होगा ,
पर कैसे सोचता तू ये सब हमारा रिश्ता ही क्या था ,
शायद कुछ नहीं ,
मैं तो अपना सब भूली थी तुझे पाकर , पर खैर
जो हुआ अच्छा हुआ मेरी अक्ल कुछ तो ठीकाने आयी ,
शुक्रिया तेरा दिल से ,
फिर मेरी इन आँखों का दाना पिघला ,और मेरा जिस्म तर-बतर हुआ ,
मेरी हर आह पर तेरा नाम आया पर तू न आया ,
वक़्त फिर रुका मेरा , हर इल्ज़ाम मेरे सिर आया ,
कभी मैंने खुद को , कभी क़िस्मत को कोसा मैंने ,
आँसुओ की सूजन अब आँखों को धुंधला कर रही है ,
जिस्म फिर कफ़न में लिपटा , बस घिसट रहा है ,
रिवाज़ो का हक़ अदा कर रहा है ,
गले में खराश हो गई , और आवज़ घुट कर मर गई
गले में लिपटी रस्सी का हक़ अदा कर रही है ,
और इस रब से मौत की फ़रमाइश कर रही है ,
एक क़ज़ा से गुजरी , फिर एक क़ज़ा मिली ,
मौत की घड़ी में , जीने की सज़ा मिली ,
सावन की खवाइश में , बिन बरसात आँसुओ से
नहाई मैं , और कतरा - कतरा मेरा जिस्म जलते अंगारों
पर चला , फिर मौन हुआ ,
अब बस हमें आज़ाद कर दो , फिर से इस मिट्टी में दफ़न
कर दो ,
अब मेरा शरीर थोड़ा ठंडा हुआ है , और ठंडक मुझे बरदास्त नहीं ,
मुझे वो कोरा कफ़न ओढ़ा दो , गर्म संदूक में सुला दो
मेरी सांसे यहाँ घुट रही है , मुझे चाँद तारों की कहानी सुना दो
मुझे चाँद तारों के दरमियां सुला दो ,
मैंने उनसे बात कर ली है ,
उन्होंने मेरे लिए वहाँ जगह बना दी है ,
अब तुम्हे इसकी भी चिंता करने की जरूरत नही ,
मैं तुम्हारे लिये हर ख़ुशी की दुआ वहाँ से भी मांग लुंगी ,
तुम्हे जिन्दगी की जन्नत नसीब हो जायेगी ,




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