परिभाषा इश्क़ की............

 बरसो की ख्वाइश........
महोब्बत की फरमाइश........
गले मिल रोने की, पर एक डर दिल का........
कही ये न समझ ले हम उन पर मरते है,
ये न पूछ बैठे की हम उन पर क्यों मरते है,
इसलिए चुप-चाप उनकी बातें सुनते है,
और अपने मन की करते है,
अब न कोई गिला उनको हमसे........
अब न कोई गिला हमें उनसे.............
बस अब शर्तो में हम नहीं बंधते,
खुल कर महोब्बत की चासनी में डूबते है........
और इश्क़ का दस्तूर बाइज्जत निभाते है.........
जो लगे हमें दिल पर चोट तो शब्दों का मरहम
भी एक दूसरे को लगाते है.......
और पूछ भी लेते है तुम हमसे इतना अब भी
क्यों घबराते हो.......तो जबाब आता है घबराता नहीं जान.....
अब बस तुम्हारी फ़िक्र है इसलिए तुमसे अपने अश्क़ ......
छिपाता हूँ, और तुम्हारी हँसी में खो तुमको पा जाता हूँ.......
ये कैसा प्यार है जो खुद रोता है..........
दुनियां के डर से अपनी हँसी भी छिपाता है........
और जो अगर मिल जाये तन्हाई तो उससे खूब लड़ता है.......
उलाहने भी देता है........और उससे गले मिल........
उसकी फोटो पर सर रख सो जाता है..........
लेकिन पूरी रात आँखों में कटी है ये बात सब जान जाते है.......उसकी हालत देख, उसकी पनीली आँखे देख,
पर वो भी कम नहीं जो अगर कोई पूछ ले रात सोये नहीं या
तबियत खराब है तो कह देता है......
रात ऑफिस का काम घर ले आया था बस वो ही करता रहा
और वक़्त का कुछ पता न चला पर अब सारी परेशानी दूर
मेरी अब सब ठीक है......
और सामने वाला निरुत्तर हो मुस्कुरा कर चला जाता है......
और ये फिर से खो जाते है अपनी यादो में........
अपनी उलझनों में........
         ये इश्क़ आशां नहीं......ये महोब्बत रुसवां नहीं......
         ये तो ऐसी आग है......जो पानी से जलती है.........
         आग से बुझती है........और मिलने की आस में........
         दुनियां के सारे रस्म निभाती है.......
         बस उसकी एक आवाज़ पर पूरी कायनात......
         उठाती है, और गले से लगा पूछती है .....
         कुछ हुआ तो नहीं न ,मुझे क्यों नहीं बताया,
         ये कह फिर सारी रात सारा दिन लड़ती है.......
         



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