ख़ुमार प्यार का


ये कैसी विरह वेदना है............
समुन्दर सी जलती है.............
आग सी बुझती है.................
किश्तीयों में बहलती है...........
नज़रो में सौदा करती है...........
चाँद-तारों संग रात बिताती है.........
बंद किताबो में सूखा गुलाब बन ,
तड़पती है............
मन में रोती है..........
होंठों पर इत्र सी महकती है.........
जिस्म से ज़ाम बन छलकती है............
शरीर पर काली परत चढ़ आयी...........
पर चंपा-चमेली बन बलखाती है.........
भूख-प्यास सब गायब है............
पर पेट पूरा भरा बदहज़मी का ,
शिकार है..........
तन-मन में बस प्यार का ख़ुमार...........
बाकी सब स्याह , काला , नीला ,
अमावश्या.............
............!!!!!!!........!!!!!!!!.........!!!!!!!!......


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