एक हौसला दरिया के किनारों को भी मिला देता है.......

 
नायाब जिंदगी मिलती नहीं रोज़// बार-बार,
नयनन की बाती चमकती रोज़ बेहिसाब//पर आत्मविश्वास से,
बन तू कभी मिट्टी का कच्चा दिया,
खुद जल रौशनी दे औरो को।
कभी बन सुराही पक्की मिट्टी की,
सबको दे शीतलता।
कभी बन जा दरिया, कभी बन जा साहिल,
दे हौसला खुद को, औरो को
इस रुनझुन मौसम की रुनझुन सलवटे,
निकाल फेक अपने जीवन से।
रख विश्वास सब ठीक होगा,
क्यूँ सोचता है हर वक़्त बुरा होगा।
हार वाली बातें मत सोच,
बस जीत सोच जो सोचेगा वो मिलेगा।
ये आसमानी सपने ज़मीनी हकीकतें,
सब जीवन का हिस्सा है, जीना पड़ता है इसे।
तू बस रख खुद पर यक़ी, खुद पर हौसला,
सब पार कर लेगा तू ये रास्ता, ये पगडंडी,
तू खुद भी हैरान होगा, खुद के विश्वास पर खुद
के यक़ी पर।
हर निगाह यहाँ बेचैन है.......
हर गला सूखा है..........
बस एक दरिया की चाह में हर मुसाफ़िर फिर रहा है,
भटक रहा है।
खाली हाथ आये थे, खाली हाथ जायेंगे,
फिर किस बात का रोना किस बात का तराना है।
बस जो मिला वो सर माथे लगाना है,
कान्हा सा बन जाना है।
ये जिंदगी का सफ़र......
उम्मीदों का कहर.......
हमें तोड़ते है, हमें बिखेरते है........
ये रोज़ की तनहाई.....महीनों की कमाई.......
ये बेमौसम की उलझने.....माथे की सलवटे.......
ये आहिस्ता-आहिस्ता सरकता वक़्त......
और सिर पर पैर रख भागती उम्र......
कहीँ खो न जाऊँ मैं, कहीँ खो न जाये तू.......
आ समेट ले अपने-अपने नसीब की खुशियाँ......
देख हमारे हाथों की लकीरों को,
कुछ तो है इनमें भी,
ज्यादा न सही, कम ही सही पर है तो सही,
लकीरों में खुशियों की लकीरें मिली हुई।
इक भोर इक सपना आया.......
खुद को अम्बर से नीचे गिरता पाया.......
आंख खुली मन घबराया..........
पर खुद को बिस्तर में पाया.......
तब समझ में आया अरे ये तो इक ख़ाब था.......
जो नींद में आया था.......
मैंने उस ख़ाब को वही झटका और उठ खड़ी हुई.......
कर रही अब हर चुनोती का सामना।
खुद के यक़ी से, खुद के विश्वाश से।
चल उठ खड़ा हो तू भी, झटक बुरा ख़ाब,
कर यक़ी खुद पर, खुद के विश्वाश पर........!!!!











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