प्याला छलकते दर्द का..........

  ये जो प्याला भरा है..........
मेरे नसों से बहते दर्द दर्द से भरा है......
जबां से निकली आह से भरा है......
तेरी यादों की हिचकियों से भरा है......
और न तड़पा इन हिचकियों ने जीना
मुहाल कर रखा है.......
हर किसी की नज़र मेरे चेहरे पर आकर टिकी है,
हर कोई पूछ रहा ये नूर किधर से आ रहा,
मैने भी कहाँ कोई नूर है, तो वो हँस देते है और आगे
बढ़ जाते है और कह देते है हमें सब पता है.......
अब तो मैं भी सोच रही क्या सच में ये बात सही है,
मेरे बारे में सबको पता चल गया है,
ये कैसी अजीब सी उलझन है,
ये कैसी अजीब सी तड़पन है,
न तू मेरे पास, न मैं तेरे पास,
पर फिर भी तेरी ज़मी मेरे पास,
तेरा आसमां मेरे पास,
तेरी हर मुस्कान मेरे पास,
आ चल मद्धम बारिश की बौछार में
कुछ दूर हाथों में हाथ थामें कुछ दूर चलते है,
भीगी राहो पर अपनी नजरें टिका भीगी पलकों को
भीगी राहो का सुकून देते है, अपनी भीगी बातों से एक-दूसरे को हंसा देते है,
एक भीगे से एहसास का सुकून देते है।
चलो कुछ काले बादलों के साथ उड़ते है,
बंजर ज़मी सींच देते है,
एक बंद गुलाब में बूंदों संग अंदर चले जाते है,
गुलाबजल सरीखे बन महक जाते है,
एक दूसरे में सबसे छिप कर खो जाते है,
एक दूसरे से पहचान बढ़ा,
ज़मी में नीर से समा जाते है,
आसमां में चांदनी से बह जाते है,
फ़िज़ाओं में खुशबू बन उड़ जाते है,
सागर में चाँद संग चांदनी बन समा जाते है......!!!!






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