एक अँधेरा लाख सितारें सा तू........

 उलझनें मेरे मन की, उलझने तेरे तन की,
ये कैसी भाषा है न तू समझता है न मै
समझती हूँ, फिर भी एक दूसरे को समझते है।
डूबी है कस्ती तेज है धारा.......
जीवन की कस्ती को चलाने में तेरा है सहारा।
ये मेरा कैसा है सहारा जो रोज़ मुझे देता है
छिप-छिप सहारा। खुद को तड़पा कहता है
तुम खुश तो हो न, तुम रोइ तो नहीं।
अब उस पगले से कैसे कहूँ तेरी हँसी से मैं.....
हँसती हूँ...... तेरे रोने से मैं रोती हूँ...... तेरी हर बात से.....
बैचन होती हूँ.......
तेरी ये राते, तेरी ये सौगाते......
तेरा यू मुस्काना......
अब मेरे जीवन का किनारा सा लगता है......
मेरे जीवन उजियारा सा लगता है.......
एक अँधेरा लाख सितारे सा तू लगता है......
अगर तू न होता तो मेरा ये अँधेरा कैसे
दूर होता......
तू चाहे कैसा भी हो क्या फर्क पड़ता है......
मुझे तो बस मेरे सुकून से मतलब है....
तेरी हँसी में ठहरी मेरी हँसी से मतलब है.....
मुझे तो बस तेरी मुस्कान मेरी ख़ुशी से
मतलब है.....!!!




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

प्यार के रूप अनेक

नियति का विधान...!!!