हिसाब-किताब जिन्दगी का.....

 रिश्वत की जिन्दगी, उधार की सांसे......
कितनी बिगडेल है हमारी आदते......
हमें बस खुद की परवाह औरो की नहीं......
वक़्त के दरिया में हम बहते मुसाफ़िर,
न हमारा कोई ठौर न ठिकाना......
हम बस मंज़िल की तलाश में भटक रहे.....
और सफ़र के कांटो को बुहार रहे......
जिंदगी आंधी में उड़ती रेत सी......
जिंदगी सांसो का हिसाब चुकाती सी......
ये ज़मी ये आसमां ये नज़ारे सब यहाँ है.....
बस हम और हमारी जिंदगी कहाँ है.....न तू
जाने न मैं जानू.....
फिर भी हम जी रहे है, वक़्त के दरिया में बह रहे है,
तपती दोपहर में छाया तलाश रहे है,
जिंदगी के नूर को हीरा चाट-चाट पूरा कर रहे है,
आंसुओ से भीगी पलकों को जाम में डूबा कर
सुकून तलाश रहे है,
रितुओ से हम बदल रहे है और इल्ज़ाम मौसम को
दे रहे है,
अपने गुनाहों को छीपाने हम मंदिर-मस्जिद-गुरूद्वारे
जा रहे है ,
और जिंदगी को पतझड़ में रेत सा उड़ा, बारिशों का
सुकून तलाश रहे है,
हम ये क्या कर रहे है, बस भीड़ में भटक जिंदगी की
दौड़ पूरी कर रहे है,
अपने सांसो का हिसाब-किताब पूरा कर रहे है,
रिश्वत की जिंदगी के बुनियादी रिवाज़ निभा रहे है,
ग़ैरों को इल्ज़ाम दे खुद को सही साबित कर रहे है,
दोस्तों की भीड़ में दोस्त तलाश रहे है,
ये जिंदगी अब तू ही बता हम क्या कर रहे है
न जी रहे है न मर रहे है,
बस यू ही जिये जा रहे है.....जीये जा रहे है......???







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