कान्हा संग राधा.....राधा संग कान्हा.........

क्या लिखू तेरी तारीफों में....अब शब्द
कम पड़ रहे है..........
तेरी तारीफों में अब हम कम पड़ रहे है.......
इश्क़ का परिन्दा मुझ से उड़ कर तुझ
पर जा बैठा है.......
तेरे इक भरोसे पर मेरा हो बैठा है......
बना दे नसीब ऐ खुदा थोड़ी सी इनायत
कर दे जो मांगी थी जो दुआ कुबूल कर
ले उनके आसरे पर जिंदगी की रौनके
नसीब कर दे..........
तेरी महोब्बत में चुपचाप ये जिंदगी गुजार
देंगे.......तेरे कदमो तले बहारो के फूल
बिछा देंगे..........
दिल की बात होंठो से न कह पाएंगे
बस निगाहों से बयां कर देंगे........
उनके हर ज़ख्म पे होंठो से होंठ मिला
सारी मधुशाला पी जायेंगे.....उन्हें अपने
आंचल में छिपा सुकूं दे जायेंगे..........
उनकी सांसो से अब हमारी महक आती
होगी हमें क्या पता हमें तो बस उनकी सांसो
की महकती धड़कने सुनाई देती है........
उनके होंठो से निकलती हँसी सुनाई देती है......
ज़मी को बरसते बादलों का सुकूं .......है......
सागर को नदियां का सुकूं.......है.......
आसमां को उड़ते पंछियों का सुकूं......है......
बागों को खिलती कलियों का सुकूं....... है......
पहाड़ो को गिरते झरने का सुकूं......है.......
तुझको और मुझको एक दूसरे की हंसी
का सकूं है,  एक दूसरे की परवाह का
सुकूं है,  एक दूसरे को एक दूसरे से मिलती
आदतों सुकूं है,   एक दूसरे को अपनी-अपनी
वफाओ का भी सुकूं है,  तुझको मेरा
सुकूं.......है.......मुझको तेरा सुकूं है........














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