मेरी नज़रो में तुम बसे तेरी नज़रो में मैं बसी.....

 कोरे पन्नों पर मेरे लफ़्ज भीगते है........
मेरे अल्फाज़ो पर तेरा जादू चलता है........
मेरी नज़रो के तुम सलीके.......
मेरे अश्क़ो के तुम पैबंद........
मेरी रूह के तुम चैन........
भरी बरसात में मोगरे के गीले
बूटे से तुम और मैं.......चल रहे थे यू ही
किसी रास्ते पर जाना कहाँ था दोनों को
मालूम नहीं पर दोनों खोये थे.........
सड़क किनारें बिखरे पलाश के सुर्ख
लाल दहकते फूलों में.....
आसमां से छिटकती बूंदों में.......
ढलते शाम में पेड़ो की ओट में छिपते
सूरज की लालिमा में.......एक दूसरे का
हाथ हाथों में लिये हुए,  कुछ ख़मोशी
समेटे हुए,  कुछ मदहोशी लिए हुए,
बस खोये थे एक दूसरे में.........
ये बहकी सी शाम,
ये लहकी सी रात,
ये महकी सी सुबह,
"मैं उसकी महोब्बत में
महकी हूँ मैं भीग के
उसके प्यार की ओस में
वो पूरा बरस जाता तो
न जाने क्या हो जाता"
कहाँ-कहाँ छिपाऊ
अब मैं उसकी चाहत
का हिसाब.......!!!











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