हम-तुम ठहरे यू ही एक-दूसरे की निगाहों में........

राहे तेरी-मेरी जुदा पर मंजिल शायद एक,
अजनबियों की महफ़िल में अजनबियों से,
हम-तुम मिले और कुछ बातें हुई,
तेरे-मेरे दरमियां,
तू धीरे-धीरे मुझमें मिला......
मैं धीरे-धीरे तुझमें मिली.......
ये बर्फीली पहाड़ियों पर जमी
कुछ ओस की बूंदे.....
कुछ सफेद झीनी चादर......
जैसे चाँद ताकत ज़मी को,
ज़मी ताकती चांदनी को,
और रात के आंगन मिलन हुआ हो
तेरा-मेरा,
तू ठहरा यू ही ताकता रहा मुझे,
मैं ठहरी यू ही ताकती रही तुझे,
कभी लगता डर तन्हाई का,
कभी लगता डर जुदाई का,
पर तेरे सामने आते ही सारा डर उड़
जाता है दूर गगन में......
छिप जाता है दूर चमन में......
खो जाता है फिजाओं में.......
सूरज की लाली कान्हे को प्यारी,
रात की उजली चांदनी राधे को प्यारी,
दोनों खोये आसमां से टपकती कुछ नीली,
कुछ दूधिया चमकीली रात में......
बहे आसमां से गिरते झरने में......
जा मिले पहाड़ी की ओट में छीपे
सागर में.....
खिल उठे नर्म बातों की सर्दियों में.......
गा उठे मधुर मिलन के गीत.....
एक-दूसरे की बाहों में........!!!!




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