तुम कोन जो मेरे अपने से लगते हो........

 
एक दर्द मिटा, एक सिरहर मिटी,
एक ख्वाइश फिर जिंदा हुई,
तेरे आने से मैं फिर गुलज़ार हुई,
ऐसा लगा जैसे किसी ने अपनी आँखों से
मेरे लबों को सहला दिया हो,
मेरे कानों में चुपके से कोई सुर छेड़ दिया हो,
मैंने भी चुपके से कुछ बूंदे बरखा की
चेहरे पर महसूस कर ली,
तुम कोन हो जो मेरे तन-मन में समाये हो,
लगता जैसे कोई भंवरा फूल का रस पी भरमाया हो,
कभी तुम लगते बर्फ की सिरहन......
कभी तुम लगते मोगरे की छुअन.......
तुम कोन जो मेरे मन मस्तिष्क में लगते महुआ की
मादकता भरता हुआ सा,
मुझे अपने आगोश में भरता हुआ सा,
तुम कोन जो मैं रोऊ तो आंखे दिखाते हो,
हंसू तो मेरे बालों को सहलाते हो,
मुझे प्यार से थपथपाते हो,
तुम कोन जो मेरा हर नाज़-नखरा उठाते हो,
और गुस्से में भी हंस कर मुझे संवारते हो,
तुम कोन जो मेरी हर ख्वाइश पूरी करने की
कोशिश करते हो,
मेरा हर खारा घूंट पीने की कोशिश करते हो,
तुम कोन...... तुम कोन...... जो मेरे सबसे
अपने से लगते हो........!!!

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