मेरे मन ये बता किस और चला है तू.......
क्या पाया क्या खोया है तूने,
बस तन में रहा और सांसो से चला है,
जीवन की पगडंडी पर ,अक्सर कंटीली
झाड़ियों में अटक कर रोया है,
मधु की तलाश में अक्सर ही गैरो की
महफ़िल में भटक कर भी अकेला ही रहा है,
जीवन सफ़र अब भी बहुत लंबा लग रहा है,
खोखले रिश्तों में अभिमन्यु सा फंसता लग रहा है,
आसमां से गिरती रात में चादर में सिमटा ख़्वाबो
की दुनियां से सुकून चुराता सा लग रहा है,
खुरदुरी दुनियां से अपना हिसाब मांगता सा लग रहा है,
सागर की लहरों से टकराकर अपनी जीवन नइया
सम्हालता सा लग रहा है,
उदास वादियों में तेरा गला रुंधा आवाज़ खोई सी ला रही है,
टिक-टिक करती घडी की सुइयां भी अब तुझे डराती सी
लग रही है,
तन्हाई के आलम में पलकों को आंसुओ में दफ़्न करती
सी लग रही है,
आहिस्ता-आहिस्ता ये रात ढल रही है,
कई अनसुलझे सवालात में ये सिसक- सिसक रो रही है,
कच्चे धागों में उलझा मेरे मन ये बता तू किस और
चला है तू.......किस और चला है तू........!!!
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