उलझने सांसो की......

 बेचैन रूह, घुटती सांसे,
पिंजरे में कैद जिस्म,
हर तरफ उसकी मौत के सौदागर घूम रहे,
फिर भी उड़ने को मचल रही,
उसकी हँसी गुजरे वक़्त में दफ़्न है,
फिर भी बेतहाशा हँस रही,
खुद को खुद के द्वारा छल रही.....
आग उसमें टहल रही.....
तूफान उसमें हिलोरें खा रहा......
आँधिया उसमें विचारों की उड़ रही.....
शोंखिया उसमें बारिश के बूंदों सी मचल रही......
एक रात बीती एक सुबह बीता.....
फिर नये सुबह की तलाश में भटक रही......!!!

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