शबनमी बूंदे बरखा की.....

 सुन कुछ तेरी फ़रमाइशें है,
कुछ मेरे आरजू,
दोनों को मिला गुलदस्ता सजाते है,
कुछ गुलाब कुछ मोगरे की महक
से कमरा सजाते है,
क्या पता कल क्या हो,
अपनी हर जिद्द आज ही पूरी कर लेते है,
बरखा से पिघलती बूंदे चुरा चेहरे पर
खुशी सज़ा लेते है,
फूलों से शबनमी मधु चुरा अपने होंठ
गीले कर लेते है,
सागर से मोती चुरा मोतियों का हार
बना लेते है...
और एक दूसरे के गले में डाल देते है,
चांद से चांदनी चुरा कमरे की छत सजा
लेते है,
सितारों से हलकी झीनी रौशनी मांग अपनी
चादर के किनारें झालर लगा लेते है,
और इस चादर तले शब्दों के शहद से एक
दूसरे को बहलाते है, मानते है,
एक-दूसरे को बाँहो का हार पहना सुकून
से सो जाते है,
एक सुनहरी याद अपने जीवन में जोड़
लेते है!!!












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