अहसास......
"जिंदगी बन गए है।
प्रेम में पगते हुए कुछ अहसास
कुछ कहे कुछ अनकहे जज़्बात
रात रात भर ख़्वाब
दिन में बहकते हुए से ख्यालात
व्यस्तता में भी उनसे मुलाकात
सुहानी शाम की टीसती तन्हाईयां
अपने अक्स में मेहबूब की परछाइयाँ" !!
तुम क्यूँ रोज़ एक सवाल मेरे होंठो पर रख कर
चले जाते हो। उत्तर की तलाश में मुझसे न जाने
कैसे-कैसे ढेरों सवाल करते हो। और मेरी
दुखती नसों में से निकली हँसी की फुहार में
खुद ही उत्तर तलाश लेते हो।
तुम मेरे लिए कभी सर्दियों की नर्म धुप बन जाते हो।
तो कभी गर्मियों की चिलचिलाती धुप।
तुम मुझे कितना डाँटते हो। आंखे दिखाते हो।
और जो मैं झूठ-मुठ में भी रो दू तो मुझे घंटो
अपने सीने से चिपकाए रखते हो। कितना प्यार
करते हो मुझे फिर इतना डाँटते क्यों हो? तुम मुझे
कभी भरी बरसात में मेरा छाता बन जाते हो।
कभी दूर गगन की सैर करवा लाते हो।
उड़ते परिन्दे सा मुझे महसूस करवाते हो ।
सुनो......
नींदों की टहनी से जो ख़्वाब तुम मेरे लिए लाए थे न
उनको मैंने मोगरे की वेणी में पिरोकर
अपने जुड़े में सजा लिया है।
ये जो अहसास के सागर से मीठे मोती तुम बटोर लाते हो न
उनको भी मैंने अपने जड़ाऊ कंगन में करीने से सजा लिया है।
कितने प्यारे लगने लगे है। आजकल मेरे ये कंगन
क्या मोल लोगे मेरे कंगन सजाने का,
मेरी नींदे सजाने का,
मेरे होंठो पर केसरी रंग सजाने का,
मेरे गले में अपनी बाँहो का हार सजाने का,
मेरे आंचल में सितारें सा छिप जाने का, क्या मोल लोगे?
तेरी ये कही अनकही सारी बाते मैं मान लेती हूँ।
पता नहीं कैसे? तुम अपनी सारी बाते मुझसे मनवा लेते हो।
कभी हँस कर कभी आँखों से इशारे कर के।
आजकल तुम्हारी दिनचर्या में मैं भी तो शामिल हो गयी हूँ।
इसलिए तो व्यस्त रहते हो तुम।
मैं सारा दिन अकेले तुम्हारी यादो में सोकर बिताती हूँ।
और फिर रात मुझे नींद नहीं आती है। बस तुम्हारी यादों
में जागकर बीतती है। मेरी रात
नज़ाकत मेरी तुमसे.....
शरारत मेरी तुमसे......
कशिश मेरी तुमसे.....
करारी मेरी तुमसे.......
बेक़रारी भी मेरी तुमसे......
मेरी इबादत में तुम....मेरी हर आदत में तुम.......
मेरी जिंदगी में तुम.....मेरी हर सांस में तुम.......
मेरी धड़कनों में तुम.........और सिर्फ तुम.......!!!
प्रेम में पगते हुए कुछ अहसास
कुछ कहे कुछ अनकहे जज़्बात
रात रात भर ख़्वाब
दिन में बहकते हुए से ख्यालात
व्यस्तता में भी उनसे मुलाकात
सुहानी शाम की टीसती तन्हाईयां
अपने अक्स में मेहबूब की परछाइयाँ" !!
तुम क्यूँ रोज़ एक सवाल मेरे होंठो पर रख कर
चले जाते हो। उत्तर की तलाश में मुझसे न जाने
कैसे-कैसे ढेरों सवाल करते हो। और मेरी
दुखती नसों में से निकली हँसी की फुहार में
खुद ही उत्तर तलाश लेते हो।
तुम मेरे लिए कभी सर्दियों की नर्म धुप बन जाते हो।
तो कभी गर्मियों की चिलचिलाती धुप।
तुम मुझे कितना डाँटते हो। आंखे दिखाते हो।
और जो मैं झूठ-मुठ में भी रो दू तो मुझे घंटो
अपने सीने से चिपकाए रखते हो। कितना प्यार
करते हो मुझे फिर इतना डाँटते क्यों हो? तुम मुझे
कभी भरी बरसात में मेरा छाता बन जाते हो।
कभी दूर गगन की सैर करवा लाते हो।
उड़ते परिन्दे सा मुझे महसूस करवाते हो ।
सुनो......
नींदों की टहनी से जो ख़्वाब तुम मेरे लिए लाए थे न
उनको मैंने मोगरे की वेणी में पिरोकर
अपने जुड़े में सजा लिया है।
ये जो अहसास के सागर से मीठे मोती तुम बटोर लाते हो न
उनको भी मैंने अपने जड़ाऊ कंगन में करीने से सजा लिया है।
कितने प्यारे लगने लगे है। आजकल मेरे ये कंगन
क्या मोल लोगे मेरे कंगन सजाने का,
मेरी नींदे सजाने का,
मेरे होंठो पर केसरी रंग सजाने का,
मेरे गले में अपनी बाँहो का हार सजाने का,
मेरे आंचल में सितारें सा छिप जाने का, क्या मोल लोगे?
तेरी ये कही अनकही सारी बाते मैं मान लेती हूँ।
पता नहीं कैसे? तुम अपनी सारी बाते मुझसे मनवा लेते हो।
कभी हँस कर कभी आँखों से इशारे कर के।
आजकल तुम्हारी दिनचर्या में मैं भी तो शामिल हो गयी हूँ।
इसलिए तो व्यस्त रहते हो तुम।
मैं सारा दिन अकेले तुम्हारी यादो में सोकर बिताती हूँ।
और फिर रात मुझे नींद नहीं आती है। बस तुम्हारी यादों
में जागकर बीतती है। मेरी रात
नज़ाकत मेरी तुमसे.....
शरारत मेरी तुमसे......
कशिश मेरी तुमसे.....
करारी मेरी तुमसे.......
बेक़रारी भी मेरी तुमसे......
मेरी इबादत में तुम....मेरी हर आदत में तुम.......
मेरी जिंदगी में तुम.....मेरी हर सांस में तुम.......
मेरी धड़कनों में तुम.........और सिर्फ तुम.......!!!
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