स्वप्निल मिलन.........

सुनो......
आज तुमने ये क्या कह दिया,
मन बावरा हो गया है।
बागों में, पर्बतों में झूला डाले
स्वप्निल मिलन में खो गया है।
जब भी तुम आवाज़ देते हो,
ये दौड़ कर तुम्हारे पास
चला आता है।
रिमझिम/रिमझिम बरसात में
छइ-छप करता,
तुम्हारी शरारती हथेलियों का
जब स्पर्श होता है। चेहरे पर तो
हर अहसास बस तेरा चेहरा होता है।
बाग, पहाड़ झरने
या वो मख़मली सेज़
जहाँ भी हम मिले
सब गवाह है।
हम कल भी पास/पास थे
हम आज भी करीब है।
मेरे वजूद में तेरा वजूद
कुछ इस तरह मिला है।
की तुम रूठो तो मैं मना लूंगी,
और मैं रूठी तो खुद मान जाऊँगी,
तेरे दिल में हर हाल में रह लूंगी,
तेरे जिस्म में रक्त बन बह लूंगी,
तेरे जिस्म में सांसे बन सब सह लूंगी,
तेरे दिल की गहराई में उतर कर,
तेरी बन कर रह लूंगी !!!




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