तुम आकाश.....मैं पृथ्वी......

 तुम आकाश,  मैं पृथ्वी
तुम आकाश में उड़ते स्वछन्द परिन्दे,
और मैं पृथ्वी पर कांटों के बीच खिलती
एक नर्म नाज़ुक कली,
तुम आकाश में किरणें बन न जाने कहा-कहा
पहुँच जाते हो,
पृथ्वी को भी अपने आग़ोश में भर लेते हो,
तुम रात को अलविदा कह रोज़ कैसे भोर की
चांदनी ले आते हो,
तुम्हारी अरुणाई में पत्ता पत्ता/बूटा बूटा खिल उठता है।
मेरे आंगन की तुलसी भी तुम्हारी अरुणाई से हरी/भरी
हो मुस्कुरा उठती है।
तुम मेरे चौके में भी घुस जाते हो चुपके से
रोशनदान के जरिये, जब सुबह मैं चाय बनाती हूँ।
ऐसा लगता है। तुम मेरी चाय में इलायची की खुसबू
से समा गये हो।
और जब मैं अख़बार उठाती हूँ, पढ़ने के लिए
तुम वहाँ भी कभी समाचार से कभी शायरी से
मेरी नज़रो को छेड़ते रहते हो।
तुम कभी मेरी धुप, कभी मेरी छाया बनते रहते हो।
मुझमें पूरी पृथ्वी का रहस्य समाया हुआ है।
पर तुम्हारी रौशनी के बिना ये अधूरा,
इसलिए तुम इसमें भी बीज बन समा जाते हो।
इसे अपनी अरुणाई से पूरा कर देते हो।
मेरी कविताओं में तुम......
मेरी उपमाओं में तुम......
मेरी लेखनी के कलम
की निब में भी तुम.....
तभी तो निखरता है.....मेरी कविताओं का सौंदर्य,
मेरी आत्मा का सौंदर्य भी तुम्हारी व्याकुलता से
निखरता है।
तुमसे मिलन की आस में ही तो मेरा बदन महुआ की
कच्ची डाली सा लचकता है।
इस जंगल सी धरा पर तुम पवन बन उड़ते फिरते हो,
और मैं रेत बन तुम्हारे पीछे पीछे चलती रहती हूँ।
तुम आकाश, मैं पृथ्वी
सारी सृष्टि तुम, सारी सृष्टि मैं
सारी रितुओं में तुम, सारे बदलते रंगों में मैं
आकाश से आती अरुणाई में सब अपने अपने
ढंग से हँसते मुस्कुराते है।
जो न आये इस आकाश से अरुणाई तो सब अधूरा
सब खाली, सब मुरझा जायेगा।
इस सृष्टि का जगत हिल जायेगा ।
इस सृष्टि का विनाश हो जायेगा !!!
















टिप्पणियाँ

  1. वाह बहुत सुन्दर रचना
    अप्रतिम काव्य

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 19 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रेम और प्राकृति के कल्पना संजोये सुंदर रचना ...
    बहुत ख़ूब लिखा है ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर पंक्तियाँ लिखी है

    जवाब देंहटाएं

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