ओ मेरे साथी...... ओ मेरे हमदम.......

ओ मेरे साथी, मेरे मार्गदर्शक
मेरे हमदम, मेरे हमसफ़र
तुम्हारी कही अनकही सारी बातें
मैंने चुपके से तुम्हारी आँखों में पढ़ ली है।
कितना दर्द छिपा है। तुम्हारी स्वप्नीली आँखों में
कितना रहस्य भरा है। तुम्हारी इन गहरी आँखों में
तुम्हारे चेहरे पर एक उदासी की लकीर भी उभरी हुई है।
जो तुमने छिपा रखी है। दुनिया से
तुम्हारे होंठो में दबी है। तुम्हारी बातें
पर तुम्हारे होंठो से निकलती है। सबको खुश करने वाली बातें
तुम मुझसे भी अपने दर्द छिपाते हो
और सोचते हो मुझे कुछ पता नहीं चलेगा। क्यों?
तुम्हे रोज दिल से पढ़ती हूँ.....
तुम्हारा चेहरा मेरी नज़रो में समा चुका है।
सच कहूँ.....
तुम्हारी सारी कही अनकही बातें मेरे रोम/रोम में बसी है।
तुम मेरे हृदय में बसते हो,
जिस्म में रक्त से बहते हो,
सांसो में हवा से घुलते हो,
तुम्हारी धड़कने मेरी धड़कनों को,
रोज चीर कर निकलती है।
तुम्हारी आहटों पे मेरा दम निकलता है।
तुम्हारी बातों से मेरा मन पिघलता है।
तुम्हारी आदतों में मेरा हर रंग मिलता है।
ओ मेरे साथी, ओ मेरे हमदम,
मुझसे न छिपाया कर अपना गम,
मुझसे न छिपाया कर अपना ज़ख्म,
मुझे न रुलाया कर
मुझे न रुलाया कर
खुद को जला कर.....खुद को तड़पा कर......!!!








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